राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (MP OBC Reservation) को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने से संबंधित सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिकाओं पर बुधवार से नियमित सुनवाई होगी। इसके लिए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन को नियुक्त किया है। इन्हें प्रति सुनवाई साढ़े पांच लाख रुपये फीस दी जाएगी। वहीं, अधिवक्ता शशांक रत्नू ओबीसी समाज की ओर से पैरवी करेंगे।
प्रदेश में सरकारी नौकरियों में 2019 तक अनुसूचित जाति को 20, अनुसूचित जनजाति को 16 और ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था। कांग्रेस की तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण 13 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया था। 2020 में इस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी। जिन परीक्षाओं को लेकर हाई कोर्ट ने रोक लगाई थी, उन्हें छोड़कर शेष भर्तियों में सरकार ने आरक्षण जारी रखा।
इस पर आपत्ति उठी तो महाधिवक्ता के अभिमत पर 87-13 का फार्मूला लागू कर दिया यानी 13 प्रतिशत पद रोककर शेष के परिणाम जारी कर नियुक्तियां प्रारंभ कर दी गईं। चूंकि, कई सारी याचिकाएं दायर हो चुकी थीं और सरकार सुप्रीम कोर्ट भी चली गई तो फिर निर्णय हुआ कि सबको एकसाथ करके सुनवाई होगी। इसमें काफी समय लग रहा था तो न्यायालय से अनुरोध किया गया और फिर प्रतिदिन सुनवाई का निर्णय हुआ। 24 सितंबर यानी बुधवार को सुनवाई होगी।
ओबीसी आरक्षण पर सभी पक्षों को साथ लेकर सरकार ने कानूनी लड़ाई की तैयारी की है। यह निर्णय ओबीसी और सरकार के लिए काफी महत्वपूर्ण है, इसलिए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। सोमवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ नई दिल्ली में बैठक की तो सामान्य प्रशासन विभाग ने वरिष्ठ अधिवक्ता पी विल्सन को सुनवाई में पक्ष रखने के लिए नियुक्त किया। इन्हें प्रति सुनवाई साढ़े पांच लाख रुपये के साथ प्रति कांफ्रेंस के लिए डेढ़ लाख रुपये दिए जाएंगे।
उधर, ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय कोर कमेटी सदस्य लोकेंद्र गुर्जर ने मंगलवार को 13 प्रतिशत पदों पर लगाई रोक को हटाने और 27 आरक्षण बहाली को लेकर शपथ-पत्र सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया। महासभा का कहना है कि 24 सितंबर से प्रारंभ होने वाली यह सुनवाई न केवल मध्य प्रदेश बल्कि संपूर्ण देश के ओबीसी समाज के भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
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