राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, भोपाल। प्रदेश में एक बार फिर नगरीय निकाय चुनाव व्यवस्था में परिवर्तन होगा। नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्षों को अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने से बचाने के लिए अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव की व्यवस्था को ही समाप्त किया जाएगा। इसके लिए सरकार नगर पालिका अधिनियम की धारा 47 में अध्यादेश के माध्यम से संशोधन करेगी। इसके लागू होने से अविश्वास प्रस्ताव ही औचित्यहीन हो जाएंगे। प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव के प्रविधान से चुनाव 2027 में होंगे।
इसमें राइट टू रिकॉल लागू होगा, जिसमें अध्यक्ष के प्रति तीन चौथाई पार्षदों के अविश्वास जताने पर खाली कुर्सी-भरी कुर्सी का चुनाव होता है। प्रदेश में राजनीतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार नगरीय निकाय के चुनाव की व्यवस्था में परिवर्तन करते रहे हैं। 2019 में तत्कालीन कमल नाथ सरकार ने प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली जनता द्वारा चुने जाने के स्थान पर पार्षदों के माध्यम से महापौर और अध्यक्ष के चुनाव की अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया था, लेकिन यह अमल में नहीं आ पाया।
मार्च 2020 में तत्कालीन शिवराज सरकार ने पुरानी व्यवस्था से ही चुनाव कराने के लिए अध्यादेश जारी किया, पर संशोधन विधेयक विधानसभा से पारित नहीं हो पाया। कोरोना महामारी के कारण निकाय चुनाव टल गए और मई 2022 में महापौर का चुनाव सीधे जनता से कराने के साथ नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली यानी पार्षद के बीच से कराने की व्यवस्था लागू कर दी। पार्षदों को साथ लेकर नहीं चल पाने के कारण कुछ निकायों में अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत होने लगे तो एक बार फिर सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 (क) में यह प्रविधान कर दिया कि अविश्वास प्रस्ताव दो के स्थान पर तीन वर्ष की कालावधि पूर्ण होने पर ही लाया जा सकता है।
इतना ही नहीं इसे पारित करने के लिए दो-तिहाई के स्थान पर तीन-चौथाई पार्षदों का समर्थन अनिवार्य कर दिया। यह अवधि समाप्त होने पर फिर अविश्वास प्रस्ताव आने लगे तो अध्यक्ष संघ की मांग पर अविश्वास प्रस्ताव के लिए कालावधि तीन वर्ष से बढ़ाकर साढ़े चार वर्ष करने का प्रविधान प्रस्तावित किया, जिसे मुख्य सचिव अनुराग जैन की अध्यक्षता वाली वरिष्ठ सचिव समिति ने आपत्ति के साथ लौटा दिया है। इसके स्थान पर अब पूरी व्यवस्था को ही बदला जा रहा है। इसमें अध्यादेश के माध्यम से नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराने का प्रविधान धारा 47 में संशोधन करके किया जा रहा है।
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इसके बाद अविश्वास प्रस्ताव का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा, क्योंकि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव का प्रविधान हो जाएगा। राइट टू रिकॉल भी प्रभावी हो जाएगा, जिसमें तीन चौथाई पार्षदों के समर्थन से ही प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है और अध्यक्ष को हटाया जाए या बनाकर रखा जाए, इसका निर्णय पार्षद नहीं खाली कुर्सी-भरी कुर्सी व्यवस्था में मतदान के माध्यम से मतदाता करते हैं। सूत्रों का कहना है कि अगली कैबिनेट बैठक में अधिनियम में संशोधन के लिए अध्यादेश का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सकता है।