
नईदुनिया न्यूज, बेहरी। पिछले वर्ष लाल तुअर (अरहर) ने बाजार में ऐसा जलवा दिखाया कि भाव 180 रुपये किलो तक पहुंच गए थे। कीमतों में आई इस उछाल ने गरीबों की थाली को तंग जरूर किया लेकिन किसानों के लिए यह फसल लाभकारी साबित हुई। इसी लाभ को ध्यान में रखते हुए इस वर्ष छोटे किसानों में तुअर की खेती को लेकर विशेष रुचि देखी जा रही है।
वर्तमान में जहां खेरची बाजार में अरहर दाल 120 रुपये किलो तक बिक रही है, वहीं लाल तुअर 5000 रुपये क्विंटल का भाव बनाए हुए है। पिछले वर्ष इसका भाव आठ हजार रुपये क्विंटल तक गया था, जिससे किसानों की उम्मीदें इस बार भी मजबूत हैं।
बेहरी क्षेत्र के किसान हुकमसिंह बनेडिया, मुकेश बागवान, सुखराम, विजेंद्र ठाकुर, सरवन राठौर, छतरसिंह दांगी, जालम बछानिया आदि बताते हैं कि तुअर की फसल का सबसे बड़ा लाभ इसकी कम लागत और कम देखभाल है। किसानों के अनुसार इसमें दवा और खाद पर खर्च न्यूनतम है। पानी की आवश्यकता भी कम है और कीट प्रकोप होने पर सामान्य दवा से आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। हालांकि फसल छह महीने लंबी अवधि की होती है, इसलिए एक ही सीजन में एक फसल ली जा सकती है, लेकिन लाभ की संभावना अधिक होने से छोटे किसान तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
इस साल मौसम ने दिया साथ
इस वर्ष अक्टूबर तक अच्छी वर्षा और अब ठंड के आरंभ होने से फसल की बढ़वार बेहतरीन है। किसानों का कहना है कि इस बार रोग-कीट का प्रकोप लगभग नगण्य है, जिससे उपज का अनुमान और अधिक बढ़ जाता है। देवास कृषि विज्ञान केंद्र के महेंद्र सिंह का कहना है कि तुअर कम पानी में अच्छा उत्पादन देने वाली भरोसेमंद दलहन फसल है। उनके अनुसार प्रति हेक्टेयर 15 से 18 क्विंटल तक उत्पादन होता है। पौधा मौसम की मार सहने की क्षमता रखता है और कम पानी में भी बेहतर उपज होती है।
निमाड़ी तुअर का चलन बढ़ा
क्षेत्र में इस समय निमाड़ी तुअर का चलन तेजी से बढ़ रहा है। यह बीज देखने में सफेद होता है लेकिन पकने पर दाल में हल्का पीलापन आ जाता है और स्वाद सामान्य तुअर जैसा ही रहता है। निमाड़ी तुअर पांच महीने में तैयार हो जाती है। उत्पादन ज्यादा होता है और बाजार में मांग स्थिर रहती है। किसानों का कहना है कि कम समय में तैयार होने वाली यह किस्म खर्च कम और मुनाफा अधिक देती है, इसलिए अब इसका रकबा बढ़ रहा है।