नईदुनिया प्रतिनिधि, छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा जिले के पूर्व सांसद नकुल नाथ ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में व्यक्त किए कि जिले के परासिया क्षेत्र में एक बच्चे को मामूली मौसमी बुखार था। स्वजनों ने डॉक्टर को दिखाया, डॉक्टर ने सिरप दिया। सिरप पीने के बाद बच्चे का पेशाब बंद हुआ, इलाज चलता रहा, लेकिन अंततः उसकी सांसें थम गईं।
सवाल उठता है कि पहली ही मौत के बाद जिम्मेदारों ने ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? पहली मृत्यु 4 सितंबर को शिवम (4) की किडनी फेल होने से हुई, लेकिन जवाबदारों ने उस मामले की अनदेखी कर दी । नाथ ने कहा कि जब चार बच्चों को पुन: किडनी फेलियर की वजह से नागपुर के अस्पताल में भर्ती कराया गया, तब किडनी की बायोप्सी से पता चला कि इन बच्चों की मौत का कारण जहरीला कफ सिरप है । उसके बाद भी डाक्टर इसे लिखते रहे और यह बाज़ार में बिकती रही।
क्या इसे समय पर रोककर मासूमों को बचाया नहीं जा सकता था? जांच में सामने आया कि श्रीसन कंपनी के कफ सिरप में 48.6 प्रतिशत डाइथाइलीन ग्लाइकाल पाया गया, जबकि सामान्य मात्रा केवल 0.1 प्रतिशत होनी चाहिए।क्या देश की दवा अनुमोदन संस्थाएं इतनी भ्रष्ट हो चुकी हैं कि दवा और जहर में फर्क करना भूल गई हैं?
एक माह से मौत का सिलसिला जारी है, अगर केंद्र व राज्य सरकार पहले दिन से सक्रिय होती, तो शायद 11 मासूम जिंदगियां और बचाई जा सकती थीं। अब सवाल यह है, इन परिवारों से उनके बच्चों को छीनने का जिम्मेदार कौन है? उन्होंने कहा कि 2017 की रैपिड अलर्ट गाइडलाइन के अनुसार कोई दवा घातक साबित होती है, तो उसे 72 घंटे के भीतर बाजार से हटाया जाना अनिवार्य है, लेकिन यहां जांच रिपोर्ट आने में ही महीना लग गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस जहरीले सिरप की 554 बोतलें छिंदवाड़ा पहुंची, जिनमें से 300 से अधिक बेची जा चुकी हैं। वर्तमान में पीड़ित प्रत्येक बच्चे के नि:शुल्क इलाज का प्रबंधन सरकार अविलंब करें ताकि बीमार बच्चों को समुचित इलाज मिल सके साथ ही पीड़ित परिवार के सदस्यों को आर्थिक परेशानियों का सामना ना करना पड़े।
प्रत्येक शोकाकुल परिवार को 50-50 लाख रुपयों की राहत राशि कफ सिरप कंपनी से दिलवाएं या फिर सरकार स्वयं राहत राशि दें। नाथ ने सरकार से आग्रह किया कि राहत राशि उपलब्ध कराने में किसी दिखावे की दस्तावेजी कार्रवाई नहीं की जाए।