
नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने रविवार को अल्प प्रवास के दौरान जल्द ही निगम, मंडलों और प्राधिकरणों में नियुक्तियां किए जाने के संकेत दिए। इन नियुक्तियों के लिए अभिलाषी नेताओं ने सत्ता और संगठन के नीति निर्धारकों से संपर्क बनाना शुरू कर दिया है।
पता चला है कि निगम मंडलों की पहली सूची पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बिहार चुनाव के दौरान ही दिल्ली व प्रदेश नेतृत्व की मुहर लगवा ली है। यह सूची दीपावली से पहले जारी होनी थी, लेकिन प्रदेश के नेताओं की बिहार चुनाव में व्यस्तता के कारण जारी नहीं हो पाई।
बिहार चुनाव में पार्टी को प्रचंड बहुमत मिलने के बाद शीर्ष नेतृत्व भी सहज है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि एसआइआर के कार्य से चार दिसंबर को निवृत्त होने के बाद यह सूची एक-दो संशोधनों के साथ जारी हो सकती है। माना जा रहा है कि ग्वालियर-चंबल अंचल में भाजपा नेताओं में व्याप्त गुटबाजी के चलते सर्वसम्मति से सूची जारी करना सहज नहीं है। निगम मंडलों में नियुक्तियों का भाजपा नेताओं को पिछले छह वर्षों से इंतजार है।
शिवराज का कार्यकाल समन्वय में निकल गया
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई थी। कांग्रेसी डेढ़ दशक से अधिक समय से सत्ता का इंतजार कर रहे थे, इसलिए नियुक्तियां पहले ही वर्ष में शुरू हो गई थीं। सवा साल में कांग्रेस का आंतरिक कलह चरम पर पहुंच गया और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थित विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए।
कमल नाथ सरकार गिरते ही सरकार की बागडोर शिवराज सिंह चौहान के हाथ में आ गई। सरकार उपचुनाव में उलझी रही और इसके बाद पौने चार वर्ष ग्वालियर-चंबल संभाग के भाजपा नेताओं के बीच समन्वय बैठाने में निकल गए। इसलिए उपचुनाव में हारे नेताओं को निगम मंडलों में स्थान मिल सका, बाकी नेता इंतजार करते रह गए।
दो वर्ष में डॉ. मोहन यादव नहीं कर पाए नियुक्तियां
2023 के चुनाव में भाजपा दोबारा बहुमत से सत्ता में आई और सरकार की कमान डॉ. मोहन यादव के हाथ में गई। पांच वर्ष के कार्यकाल में से दो वर्ष निकल चुके हैं, लेकिन ग्वालियर-चंबल संभाग से किसी नेता की निगम मंडल में नियुक्ति नहीं हुई है। ग्वालियर विकास प्राधिकरण, साडा और वरिष्ठ पार्षदों के पद भी रिक्त हैं।
अंचल के नेताओं का समन्वय सबसे बड़ी चुनौती
ग्वालियर-चंबल संभाग में भाजपा दो ध्रुवों में बंटी नजर आ रही है। इन दोनों ध्रुवों के बीच समन्वय के बाद ही निर्विवाद नियुक्तियां संभव हैं। सरकार और संगठन के लिए दोनों ध्रुवों को साधना बड़ी चुनौती है। संगठन स्तर पर पदों के बंटवारे के फार्मूले पर सहमति बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
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