नईदुनिया प्रतिनिधि, ग्वालियर। विद्युत वितरण कंपनी उपभोक्ताओं को औसतन 23 घंटे 49 मिनट बिजली देने का दावा करती है, लेकिन शहर की हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। उपभोक्ताओं को 16 घंटे ही बिजली मिल पा रही है। इसके पीछे के कारण रोजाना ट्रिपिंग और औसतन चार से पांच घंटे आपूर्ति बाधित रहना है। वहीं करीब दो से तीन घंटे की अघोषित कटौती अलग।
बार-बार बिजली गुल से उपभोक्ताओं की दिनचर्या बिगड़ रही है और व्यवसाय भी प्रभावित हो रहे हैं। मेंटेनेंस और विद्युत निर्माण कार्य के नाम पर सालभर कटौती की जाती रही, लेकिन हकीकत यह है कि कई फीडरों पर ये काम सिर्फ कागजों तक सीमित रहे। वर्षा से पहले घंटों कटौती कर ट्रांसफॉर्मर क्षमता बढ़ाने और जर्जर लाइनें दुरुस्त करने का दावा किया गया था, लेकिन जमीनी हालात जस के तस बने हुए हैं।
बढ़ती बिजली समस्या से नाराजगी इतनी बढ़ी कि खुद ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को भी मैदान में उतरकर हालात देखने पड़े। इसके बावजूद आपूर्ति की स्थिरता में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा। हर दिन प्रभावित होते हजारों उपभोक्ता शहर के चार नगर संभागों में संधारण और निर्माण कार्य के नाम पर रोजाना 30 से 50 हजार उपभोक्ता प्रभावित होते हैं।
खास बात यह है कि इन बाधाओं को कंपनी के आधिकारिक आंकड़ों में शामिल नहीं किया जाता। शहरी क्षेत्र में जहां कागजों पर 23 घंटे 49 मिनट सप्लाई दिखाई जाती है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए नौ घंटे से ज्यादा बिजली का दावा किया जा रहा है। असलियत यह है कि कंपनी उपभोक्ताओं के साथ आंकड़ों का खेल खेल रही है।
कंपनी का दावा शहर में औसतन 23 घंटे 49 मिनट सप्लाई
दिनभर में 4–5 बार ट्रिपिंग
4–5 घंटे तक कटौती
2–3 घंटे अघोषित
गुल मेंटेनेंस और निर्माण कार्य से सुधार मरम्मत के बाद भी घास-पेड़ तारों को छूते,
खराब लाइन जस की तस ट्रांसफार्मर क्षमता बढ़ाने और लाइन दुरुस्त करने का काम
घंटों कटौती के बावजूद समस्याएं खत्म नहीं
ग्रामीण क्षेत्रों में 9 घंटे से अधिक सप्लाई कटौती और बाधाएं कहीं ज्यादा
रोजाना प्रभावित उपभोक्ताओं 30–50 हजार उपभोक्ता प्रभावित, लेकिन आंकड़ों से बाहर
शहरी उपभोक्ता : 3 लाख 9 हजार 208
ग्रामीण उपभोक्ता: 2 लाख 1 हजार 200
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