
विक्रम सिंह तोमर, नईदुनिया, ग्वालियर। ग्वालियर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर स्थित सौंसा गांव, जहां से निकली प्रतिभाएं पूरे प्रदेश में पहचान बना रही हैं। यहां के हर घर में एक खिलाड़ी और हर दूसरे घर में एक फौजी मिल जाएगा। खेलों के प्रति ऐसा जुनून की बच्चे ही नहीं गांव के बुजुर्ग भी खुले मैदान में दौड़ लगाते हैं। खेल और देशभक्ति के इस अद्भुत संगम ने सौंसा को राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान दी है। जिम्नास्टिक और एथलेटिक्स खेलों के मामले में यह गांव अव्वल है।
देश के सबसे बड़े फिजिकल एजुकेशन सेंटर एलएनआइपीई के बाद दूसरा जिम्नास्टिक सेंटर सौंसा गांव में है। लगभग 400 घरों वाले इसे गांव में करीब 200 लोग सेना, पुलिस, एयर फोर्स, एनएसजी ट्रेंनिंग सेंटर में सेवाएं दे रहे हैं। यहां से निकले खिलाड़ी राज्यस्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक परचम लहरा रहे हैं। न सिर्फ पुरुष, बल्कि महिलाएं और बजुर्ग भी पीछे नहीं हैं। गांव में जिम्नास्टिक और एथलेटिक्स को शिखर पर पहुंचाने वाले 90 वर्षीय कोच खेमसिंह यादव जरूरत पड़ने पर आज भी खिलाड़ियों को मार्गदर्शन देते हैं।
सौंसा गांव को जिम्नेस्टिक और एथलेटिक्स का गढ़ बनाने में सिंधिया स्कूल, दुर्ग का महत्वपूर्ण योगदान है। यहां की बढ़ती खेल क्षमता को देखते हुए सिंधिया स्कूल ने 80 वर्ष पहले गांव को गोद लिया और 1971 में जिम्नास्टिक की प्रैक्टिस के लिए आवश्यक उपकरण और संसाधन उपलब्ध करवाए। तब से हर साल खेलों को बढ़ावा देने के लिए विशेष फंड जारी किया जाता है। इससे खेल मैदान, उपकरण और प्रशिक्षण सुविधाओं में लगातार सुधार हो रहा है।
सौंसा गांव में 30 नवंबर को उनका वार्षिक उत्सव सौंसा-डे मनाया जाता है। इसमें 25 तरह के विभिन्न खेल खेले जाते हैं। इस प्रतियोगिता में गांव के बच्चे से बुजुर्ग तक भाग लेते हैं। हाल ही में सौंसा-डे नाम से मनाए गए खेल उत्सव में गांव को नोडल स्पोर्ट्स सेंटर के रूप में विकसित किए जाने का निर्णय लिया गया है।
बुजुर्ग कोच ने कहा
गांव में 1969 से 2002 तक खिलाड़ियों को तैयार कर देश की सेवा में लगाने वाले 90 वर्षीय रिटायर स्पोर्ट्स कोच खेमसिंह यादव ने कहा कि सिंधिया स्कूल ने गांव को सहारा दिया और गांव के युवा खिलाड़ियों ने ईमानदारी से पूरी मेहनत की। परिणाम यह हुआ कि गांव के खिलाड़ी अब देशभर में अपनी जगह बनाए हैं।
90 के दशक में एथलेटिक्स में जीवन का अनमोल समय दिया, फलस्वरूप जब 2004 में आरपीएफ में चयन की बारी आई तो स्पोर्टस के प्वाइंट्स ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। गांव में अगर यह सुविधा न होती तो परेशानी हो सकती थी। - हरिकृष्ण यादव, आरपीएफ, झांसी रीजन
एथलेटिक्स में कई वर्षों तक प्रैक्टिस की है, प्रतियोगिताएं भी खेलीं। जब बारी पुलिस सेवा में चयनित होने की आई तो एथलीट होना फायदेमंद रहा। प्वाइंट तो मददगार रहे ही साथ ही स्पोर्टस से बढ़ी फिजिकल स्ट्रेंथ और फिटनेस भी चयन में सहायक रही। - रंजना यादव, सेंट्रल जेल, भोपाल