नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। जिला उपभोक्ता आयोग ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि बीमा कंपनी केवल इस आधार पर क्लेम निरस्त नहीं कर सकती कि व्यक्ति ने अन्य कंपनियों से भी पालिसी ले रखी है। आयोग ने माना कि कंपनी द्वारा बेवजह क्लेम निरस्त करने से परिवादी परेशान हुआ है। आयोग ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी ब्याज सहित 50 लाख रुपये क्लेम राशि का भुगतान करे। इसके अलावा मानसिक परेशानी के हर्जाने के रूप में 50 हजार रुपये और वाद व्यय के रूप में 20 हजार रुपये भी देने होंगे।
क्या है मामला
यह मामला परिवादी संदीप हारोड़ ने एडवोकेट पंकज खंडेलवाल के माध्यम से जिला उपभोक्ता आयोग में दायर किया था। परिवाद में कहा गया कि संदीप की माता सुशीला हारोड़ ने आदित्य बिरला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से 50 लाख रुपये की दुर्घटना बीमा पालिसी ली थी। यह पालिसी 8 मार्च 2019 से 7 मार्च 2022 तक के लिए मान्य थी। इसके प्रीमियम के रूप में कंपनी ने 11,849 रुपये जमा करवाए थे।
कंपनी ने क्या क्लेम निरस्त
16 नवंबर 2019 को सुशीला हारोड़ की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। इसके बाद संदीप ने पालिसी के तहत बीमा कंपनी से क्लेम प्रस्तुत किया, लेकिन कंपनी ने यह कहते हुए क्लेम निरस्त कर दिया कि सुशीला ने अन्य कंपनियों से भी बीमा पालिसियां ले रखी थीं और इसकी जानकारी नहीं दी गई।
बीमा कंपनी के इस फैसले के खिलाफ संदीप ने जिला उपभोक्ता आयोग का दरवाज़ा खटखटाया। उनके अधिवक्ता पंकज खंडेलवाल ने तर्क दिया कि यदि बीमा कंपनी को दूसरी कंपनियों से पालिसी लेने पर आपत्ति थी, तो उन्हें शुरुआत में ही पालिसी जारी नहीं करनी चाहिए थी। जानकारी छुपाने का आरोप भी निराधार है, क्योंकि अगर परिवादी ने जानकारी नहीं दी होती, तो कंपनी को यह पता ही नहीं चलता कि अन्य पालिसियां ली गई हैं।
अधिवक्ता खंडेलवाल ने बताया कि आयोग ने निर्णय सुनाते हुए आदेश दिया है कि बीमा कंपनी परिवादी को 50 लाख रुपये क्लेम राशि, 50 हजार रुपये मानसिक परेशानी का हर्जाना और 20 हजार रुपये वाद व्यय का भुगतान करे। साथ ही, क्लेम राशि पर परिवाद की प्रस्तुति तिथि से 6 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज भी देना होगा।