
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। माल बेचने वाले ने यदि टैक्स नहीं चुकाया था तो अब उस माल को खरीदने वाले से टैक्स की वसूली होगी। जीएसटी के ऐसे ही नोटिसों ने बाजार और कारोबारियों के बीच खलबली मचा दी है। तीन दिनों में ही जीएसटी की ओर से इंदौर और आसपास के सैकड़ों व्यापारियों को ऐसे नोटिस मिल चुके हैं। पूरे प्रदेश में हजारों कारोबारियों को ऐसे नोटिस मिले हैं। बीते साल खरीदे गए माल के विक्रेता द्वारा टैक्स चुकाने में की गई गड़बड़ी या लापरवाही का भुगतान अब इन क्रेता कारोबारियों को करने का दबाव डाला जा रहा है।
नोटिस मिलने के बाद व्यापारी ही नहीं बल्कि उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट और कर सलाहकार भी परेशान नजर आ रहे हैं। सवाल खड़ा हो रहा है कि यदि कोई सप्लायर उसका टैक्स नहीं चुकाता है तो ऐसे में उस टैक्स को चुकाने की जवाबदारी आखिर उस माल को खरीदने वाले पर कैसे डाली जा सकती है। कई महीनों बाद ऐसे टैक्स की मांग की जा रही है और तो और 30 नवंबर तक यह नहीं चुकाने पर 18 प्रतिशत की दर से इस पर ब्याज अलग से वसूला जाएगा।
जीएसटी द्वारा भेजे गए ऐसे नोटिसों पर विरोध के स्वर उठने लगे हैं। व्यापारी कह रहे हैं कि किसी दूसरे व्यापारी के टैक्स के लिए वे कैसे जिम्मेदार हो सकते हैं। नोटिस और नियमों में इन व्यापारियों पर यह जवाबदेही भी डाली जा रही है कि माल बेचने वाले से टैक्स भरवाने की जवाबदारी वे अपने कंधों पर ले ले।
जीएसटी के अंतर्गत माल बेचने वाले व्यापारी को प्रत्येक माह की 11 तारीख तक जीएसटीआर-1 रिर्टन भरना होता है। ऑनलाइन दाखिल इस रिटर्न में दिखाया जाता है कि उसमें किस किस को माल बेचा। यह रिटर्न दाखिल होने के बाद जीएसटीआर-2बी में दिखने लगता है, जो कि क्रेता तो दिखता है। क्रेता इस रिटर्न के आधार पर खरीदे गए माल को अपने रिटर्न में दिखाता है और विक्रेता द्वारा चुकाए गए टैक्स की आइटीसी भी क्लेम करता है। इसी तरह हर माह की 20 या 22 तारीख तक एक और रिटर्न भरना होता है जिसमें व्यापारी अपने ऊपर बीते माह में आए कुल टैक्स के दायित्व का ब्यौरा देते हुए टैक्स जमा करता है।
ताजा मामले में ये हो रहा है कि बीते महीने या साल में हुए व्यापार में किसी ने 3-बी फार्म और टैक्स सितंबर अंत तक नहीं भरा तो उससे माल खरीदने वाले को अब नोटिस देकर कहा गया है कि उस माल पर हासिल इनपुट टैक्स क्रेडिट 30 नवंबर तक शासन के खजाने में लौटा दे। अन्यथा इस तारीख के बाद 18 प्रतिशत ब्याज और देना होगा।
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चार्टर्ड अकाउंटेंट सुनील पी जैन के मुताबिक सैकड़ों नहीं बल्कि ऐसे हजारों नोटिस कुछ ही दिनों में जारी हुए है। नोटिस और ये प्रावधान पूरी तरह अव्यावहारिक है। कई ऐसे प्रकरण सामने आ रहे हैं कि जिस व्यापारी से माल खरीदा था वह व्यापारी अब या तो व्यापार ही बंद कर चुका है या फिर उससे खरीदार का अब कोई संपर्क नहीं रहा सिर्फ एक बार का व्यापार उससे हुआ था। ऐसे में वह आखिर कैसे सामने वाले व्यापारी को ढूंढे और उससे टैक्स चुकाने के लिए विवश करें। जीएसटी विभाग कह रहा है कि यदि बेचने वाला व्यापारी आगे टैक्स भर देगा तो फिर आइटीसी वापस कर दी जाएगी। यह भी मनमाना नियम है। टैक्स वसूली का काम शासन का है समय रहते शासन संबंधित व्यक्ति से वसूली करें। यह तो मनमाना ही है कि किसी ओर को उस टैक्स को जमा करवाया जाए या शासन का काम करने के लिए विवश किया जाए।