
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर: इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट के अंडरग्राउंड हिस्से और प्लानिंग के विरोध में लगी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने शासन से प्रोजेक्ट की पूरी रिपोर्ट मांग ली है। शासन को निर्देश दिए गए हैं कि प्रोजेक्ट की डिजाइन, प्रोजेक्ट की फेसवाइस समयसीमा, कितने दिनों में कितना काम होगा, जैसी सभी जानकारियां कोर्ट के सामने पेश करें।
इस बीच कोर्ट में तीखी बहस भी हुई। सरकारी वकील ने आरोप लगा दिया कि प्रसिद्धि पाने और अपनी जमीन बचाने के लिए कुछ लोगों ने याचिका दायर की है। कोर्ट में पैरवी कर रहे याचिकाकर्ता किशोर कोडवानी की योग्यता पर भी वकील ने सवाल खड़े कर दिए। इस पर कोडवानी ने पलटवार करते हुए मेट्रो रेल कार्पोरेशन के बोर्ड के सदस्यों की योग्यता को ही कठघरे में रखा और कोर्ट को बताया कि इसमें एक भी डायरेक्टर ऐसा नहीं है, जिसके पास रेल प्रोजेक्ट का अनुभव या तकनीकी डिग्री हो।
हाई कोर्ट में शहर के तीन नागरिकों किशोर कोडवानी, शेखर गिरी और महेश वर्मा ने याचिका दायर की है। कोडवानी शहर के मुद्दों पर आवाज उठाने के लिए जाने जाते हैं। वे ही खुद याचिका पर सुनवाई के लिए कोर्ट में दलीलें भी दे रहे हैं। कोडवानी ने इस दौरान इसके कारण होने वाले नुकसान और इसकी बगैर इजाजत के काम शुरू करने का तर्क कोर्ट के सामने रखा और कहा कि सरकार ही खुद नियम तोड़ रही है।
याचिका में मेट्रो से शहर की पुरातात्विक धरोहरों को नुकसान होने का अंदेशा जताया गया है। यह भी कहा गया है कि इससे भूजल की स्थिति में भी बदलाव आ सकता है। याचिका के साथ मेट्रो का काम रुकवाने का आवेदन भी कोर्ट में लगाया गया था। मंगलवार की सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कोर्ट के समक्ष याचिका के औचित्य पर सवाल खड़ा किया। तर्क दिया कि जनहित का कोई मुद्दा नहीं है, ये केवल अपनी जमीनें बचाने के लिए कोर्ट के समक्ष आए हैं। प्रसिद्धि पाने के लिए ये याचिका दायर की गई है।
कोडवानी ने कोर्ट में कहा कि मेरी कोई जमीन वहां नहीं है, मैं केवल शहर के लिए कोर्ट आया हूं। मुझ पर आरोप लगा रहे हैं जबकि सरकार मेट्रो से प्रचार पाने में लगी है। सरकार के रोजाना नए-नए बयान सामने आ रहे हैं। इस प्रोजेक्ट की इजाजत कहां से हुई ये ही स्पष्ट नहीं किया जा रहा है।
कोर्ट ने कोडवानी से प्रश्न किया कि क्या उन्होंने कोर्ट आने के पहले अपना प्रेजेंटेशन कभी सरकार के समक्ष रखा? इस पर कोडवानी ने कोर्ट का ही पुराना फैसला पेश करते हुए कहा कि प्रोजेक्ट की अनुमति के लिए जिला योजना समिति की सहमति की आवश्यकता है, लेकिन इंदौर में जिला योजना समिति ही नहीं बनी है। असल में तो संवैधानिक नियमों का उल्लंघन खुद सरकार की ओर से किया जा रहा है। कोर्ट के आदेश के पालन के तहत मुझे जानकारी दी जानी चाहिए थी, न तो जानकारी दी गई, न ही मेरे तथ्यों को सुना गया।
पुरातात्विक इमारतों के आसपास किसी भी तरह की अनुमति का अधिकार राष्ट्रपति के पास है, लेकिन उनसे कोई अनुमति नहीं ली गई। सरकार नियमों का उल्लंघन करते हुए काम कर रही है। काम शुरू तो कर दिया गया लेकिन प्रोजेक्ट का प्रारूप और प्लानिंग ही फाइनल नहीं है। ये मनमर्जी से काम किए जा रहे हैं। रोजाना सरकार के मंत्री और अफसर प्रोजेक्ट को लेकर अलग-अलग बयान देते हैं। शहर के भूमिगत जल पर भी असर पड़ेगा, लेकिन पर्यावरण की एनओसी लेने की जहमत तक नहीं उठाई गई है।
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कोडवानी के द्वारा पूर्व में कोर्ट के फैसले और अन्य दलीलों के बाद कोर्ट ने साफ कहा कि विकास के दौरान परेशानी आती है ये बात सही है, लेकिन कब तक और किस स्तर तक ये भी जनता को जानना जरूरी है। ऐसे में इसकी पूरी प्रोजेक्ट रिपोर्ट प्रशासन पेश करे, उसके बाद हम देखते हैं कि इस पर रोक लगाई जाए या नहीं। अब इस मामले में आठ दिसंबर को सुनवाई होगी।
कोर्ट में बीआरटीएस की बात भी उठी। कोडवानी ने कहा कि बीआरटीएस को भी इसी तरह बगैर किसी प्लानिंग और बगैर किसी अनुमति के अपने हिसाब से ही अफसरों ने तैयार किया था। हमने तब भी मुद्दा उठाया था, आपत्ति ली थी। अब 12 साल बाद पैसा बर्बाद करने के बाद सरकार उसे तोड़ रही है। सुनवाई के दौरान कोर्ट में सरकारी वकील ने कोडवानी की योग्यता पर सवाल खड़ा किया। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि मैं किताबों में ज्यादा नहीं पढ़ा, लेकिन व्यावहारिक ज्ञान पर बात करता हूं।
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