
नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। आरक्षण पर ब्राह्मण बेटियों पर असभ्य बयान देने के आरोप में फंसे संतोष वर्मा (आईएएस) के पक्ष में नकली फैसला देने के आरोप में फंसे तत्कालीन स्पेशल जज विजेंद्रसिंह रावत को कोर्ट से राहत नहीं मिली है। एसीपी विनोद दीक्षित के विरोध पत्र के बाद कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। एसीपी ने रावत और वर्मा की मिलीभगत बताई और कहा कि जिस फैसले के आधार पर वर्मा ने आईएएस अवार्ड लिया, वह रावत की कोर्ट में सुबह 4 से 7 बजे के बीच टाइप हुआ है। उस वक्त रावत के मोबाइल की टावर लोकेशन जिला कोर्ट में आई है। कोर्ट इस पर शुक्रवार को फैसला सुनाएगी।
तत्कालीन स्पेशल जज विजेंद्र रावत द्वारा ही संतोष पुत्र रुमालसिंह (मंगलनगर) के खिलाफ एमजी रोड थाना में रिपोर्ट लिखवाई थी। उनकी तरफ से पूर्व न्यायाधीश विष्णु कुमार सोनी ने पक्ष रखा और कहा कि फैसला 6 अक्टूबर को टाइप हुआ है और उस दिन विजेंद्र रावत छुट्टी पर थे। फैसला पूर्णतः फर्जी है और रावत की कोर्ट से पास नहीं हुआ है।
लोक अभियोजक अभिजीतसिंह राठौर ने विरोध करते हुए कहा, विवादित फैसले पर भले ही 6 अक्टूबर 2020 की तारीख लिखी गई है, लेकिन ये फैसले तो 5 और 7 अक्टूबर 2020 को टाइप किए गए थे। रावत के कोर्ट रूम में लगे कंप्यूटर की हार्ड डिस्क से इसकी पुष्टि हुई है। चौकाने वाली बात यह भी है कि दोनों ही दिन फैसले सुबह चार से सात बजे के बीच टाइप किए गए थे। रावत के मोबाइल की टावर लोकेशन भी इन दोनों ही दिन इस वक्त जिला कोर्ट की मिली है।
रावत की तरफ से बहस में कहा गया कि वे बेकसूर हैं और उन्हें जबरन फंसाया जा रहा है। उन्हें अग्रिम जमानत का लाभ दिया जाता है तो उनके कहीं भागने की कोई आशंका नहीं है। उनकी पत्नी का निधन हो चुका है और घर पर दो बच्चे हैं। सत्र न्यायाधीश प्रकाश कसेर ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।
अभियोजन ने अपनी बहस में यह बात भी कोर्ट के सामने रखी कि आरोपित रावत और आईएएस संतोष वर्मा आपस में संपर्क में थे। सितंबर-अक्टूबर 2020 के दौरान दोनों के बीच 114 बार मोबाइल पर बात हुई थी। इस दौरान कई बार दोनों के मोबाइल की टावर लोकेशन एक साथ मिली है। इसका मतलब यह है कि रावत और वर्मा उस वक्त एक ही स्थान पर साथ में मौजूद थे।
पूरे प्रकरण में एक अन्य सीनियर जज संदेह के घेरे में हैं। सबसे पहले वर्मा की दोस्ती इसी जज से हुई थी। उसके बाद रावत से मुलाकात करवाई गई। रावत और संदेही जज की पत्नियां गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं। वर्मा से शुरुआती दोस्ती उपचार के सिलसिले में हुई थी। इसके बाद फैसले की बारी आई।
विभागीय पदोन्नति कमेटी (डीपीसी) के समक्ष वर्मा ने दो फैसले प्रस्तुत किए थे। एक फैसले में उसने राजीनामा बताया था। कमेटी ने कहा राजीनामा तो अपराध की पुष्टि करता है। इसके तत्काल बाद वर्मा ने दूसरा फैसला भेजा जिसमें महिला द्वारा लिखाई रिपोर्ट में बरी बताया। पुलिस का दावा है कि दोनों ही फैसले रावत की कोर्ट में बने हैं। रावत की कोर्ट में पदस्थ लिपिक, टाइपिस्ट और आवक जावक वाले कर्मचारी भी जांच की जद में हैं।
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