MP Election 2023: महिला आरक्षण की राह में परिवारवाद रोड़ा, राजनीतिक परिवार को ही मिलता है महत्व
MP Election 2023: मध्यप्रदेश में कांग्रेस और भाजपा में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं है। टिकट वितरण के दौरान उन महिलाओं को अधिक मौका मिलता है, जो राजनीतिक परिवार से जुड़ी है।
By Bharat Mandhanya
Edited By: Bharat Mandhanya
Publish Date: Sat, 23 Sep 2023 11:45:48 AM (IST)
Updated Date: Sat, 23 Sep 2023 11:59:02 AM (IST)
महिला आरक्षण की राह में परिवारवाद रोड़ाHighLights
- दोनों दलों में महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व नहीं
- राजनीतिक परिवार से जुड़ी महिलाओं को मिलता है मौका
- सीट आरक्षित होने पर ही महिलाओं को मिलता है मौका
MP Election 2023 कपीश दुबे, इंदौर। प्रदेश में चुनाव का मौसम है और देश में महिलाओं को राजनीतिक नेतृत्व में पर्याप्त अवसर देने की चर्चा हो रही है। आजादी के स्वर्णकाल में महिलाओं की स्थिति पहले से बेहतर हुई है, लेकिन राजनीतिक दलों में महिलाओं को अब भी समानता का अवसर नहीं मिल पाता है। महिला सशक्तीकरण की तमाम बातों के बीच राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में अंतर दिखता है। यही कारण है कि स्वतंत्रता के बाद महिला नेतृत्व उस अनुपात में नहीं उभर सका, जिसकी उम्मीद थी। इसका कारण है कि राजनीतिक परिवारों से जुड़ी महिलाओं को ही विभिन्न दलों में प्राथमिकता मिलती है।
दोनों दलों में महिला नेतृत्व की कमी
वर्तमान परिदृश्य में मप्र के दोनों राजनीतिक दलों (भाजपा और कांग्रेस) में महिला नेतृत्व की कमी स्पष्ट नजर आती है। अपवाद को छोड़कर चुनावी राजनीति में सामान्यत: महिलाओं को तभी अवसर मिलता है जब कोई सीट आरक्षित होती है। ऐसे में जब पुरुष नेता संबंधित क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ पाता तो अपने परिवार से किसी महिला को टिकट दिलवाकर सीट पर अपना प्रभाव कायम रखने का प्रयास करता है।
कई बार पुरुष नेता के निधन के बाद परिवार की महिला को पार्टी टिकट दे देती है। पार्टी संगठन में भी परिवार का प्रभाव नजर आता है। बड़े नेताओं की पुत्री, पत्नी या बहू को पदों पर प्राथमिकता मिलती है। अंचल में भी अधिकांश सीटों पर दोनों दलों ने ऐसी महिलाओं को प्रतिनिधित्व का अवसर दिया है, जिनके परिवार के पुरुष अहम पदों पर रहे हैं।
कुछ अपवाद भी
ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजनीतिक परिवार की महिलाओं को ही अवसर मिलते हैं। कुछ अपवाद भी हैं। मप्र की मंत्री उषा ठाकुर अपने प्रयासों से राजनीति में सफलता पा रही हैं। हालांकि उनकी सीट भी बार–बार बदली गई। लोकसभा की अध्यक्ष रहीं सुमित्रा महाजन ने भी गैर राजनीतिक परिवार से निकलकर अपनी पहचान बनाई। मगर ऐसे उदाहरण बहुत कम हैं।
अंचल की प्रमुख महिला जनप्रतिनिधि
- देवास से विधायक गायत्री राजे पंवार की पहचान रियासत की रानी की रही है। उनके पति और भाजपा के पूर्व मंत्री तुकोजीराव पंवार की मृत्यु के बाद पार्टी ने उन्हें चुनाव में प्रत्याशी बनाया था।
- खरगोन जिले के महेश्वर से कांग्रेस विधायक डा. विजयलक्ष्मी साधौ के पिता स्व. सीताराम साधौ कई बार विधायक चुने गए। उन्हें निमाड़ का गांधी कहा जाता था। पिता की राजनीतिक विरासत को विजयलक्ष्मी ने आगे बढ़ाया।
- धार से भाजपा विधायक नीना वर्मा के पति विक्रम वर्मा भाजपा के कद्दावर नेता रहे हैं। वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सहित संगठन में कई अहम पदों पर रहे। कैबिनेट मंत्री रहते स्कूल शिक्षा, उच्च शिक्षा और खेल जैसे विभाग संभाले। केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार में भी खेल एवं युवा मामलों के मंत्री रहे। धार से विक्रम वर्मा कई बार विधायक भी रहे और अब उनकी विरासत को पत्नी आगे बढ़ा रही हैं।
- इंदौर विधानसभा चार से विधायक मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़ शहर की महापौर भी रह चुकी हैं। उनके पति इसी सीट से तीन बार विधायक चुने गए थे और कैबिनेट मंत्री भी रहे थे। दुर्घटना में उनके निधन के बाद पार्टी ने इस सीट से मालिनी को टिकट दिया। वर्ष 2008 में पहला चुनाव लड़ने के बाद से अब तक वे लगातार तीन बार यहां से विधायक बन चुकी हैं।
- राज्यसभा में मप्र से एकमात्र महिला प्रतिनिधि भाजपा नेता कविता पाटीदार हैं। उनके पिता भेरूलाल पाटीदार महू विधानसभा सीट से चार बार जीते। मप्र विधानसभा में मंत्री और उपसभापति भी रहे। वे पिता की विरासत को बढ़ा रहीं।