
Ram Navami 2024:नईदुनिया प्रतिनिधि, इंदौर। जन-जन के प्रति उदार हृदय और करुणा भाव रखने वाले श्रीराम के मर्यादा पुरुषोत्तम रूप के एक अनूठी कहानी के रूप में दर्शन इंदौर में होते हैं। इस मंदिर का नाम ही श्रीराम के नाम से है, उसमें मुख्य विग्रह के रूप में भगवान टीकमजी विराजित हैं, जबकि किसी जमाने में मंदिर के केंद्र में श्रीराम ही माता सीता और लक्ष्मणजी के साथ विराजित थे। यह एक ऐसा मंदिर है जहां श्रीराम के बाल रूप के भी दर्शन होते हैं और उनके साथ श्रीकृष्ण का भी बाल रूप विराजित है।
मंदिर में टीकमजी भगवान के समीप स्थापित श्रीराम दरबार।
दिलचस्प बात तो यह है कि यहां श्रीकृष्ण श्वेत वर्णीय हैं, जबकि श्रीराम श्याम वर्णीय है। यह मंदिर शहर के पश्चिम में पंचकुइया क्षेत्र में है। श्रीराम मंदिर के नाम से पहचाने जाने वाले इस मंदिर में जहां श्रीराम की भगवान की तरह पूजा होती है, वहीं बालक की तरह देखभाल भी की जाती है। राजभोग भी लगता है तो खिलौने भी रखे जाते हैं।
इस मंदिर का निर्माण या यहां विग्रह की स्थापना किस वर्ष हुई, इसका पुख्ता प्रमाण तो नहीं लेकिन कहा जाता है कि यह मंदिर करीब 500 वर्ष पुराना है। मंदिर की स्थापना ठाकुरदास गुरु प्रहलाददास महाराज ने की थी। वर्षभर भक्त भगवान राम के दर्शन करने यहां आते हैं, लेकिन राम नवमी की शाम प्रभु भक्तों को दर्शन देने मंदिर से बाहर निकलते हैं और भगवान के स्वागत में भक्त भी कोई कमी नहीं रहने देते।
पंचकुइया पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर रामगोपाल दास भगवान के इस विशेष विग्रह के बारे में बताते हैं कि जब भगवान राम और कृष्ण का नाम लिया जाता है तो पहले श्रीराम का ही नाम आता है। यहां दोनों ही भगवान के विग्रह हैं तो कहा जाता है कि भगवान राम ने कृष्ण का श्याम वर्ण लिया और बदले में अपना रूप उन्हें दे दिया। इस तरह यहां श्याम वर्ण में श्रीराम और गौर वर्ण में श्रीकृष्ण की पूजा होने लगी। भगवान का यह विग्रह बाल रूप में हैं इसलिए इनकी सेवा भी वैसे ही की जाती है जैसे बच्चे की होती है।
सुबह 5 बजे उत्थापन के समय माखन-मिश्री और दूध का भोग लगता है तो सुबह 8 बजे होने वाली शृंगार आरती के बाद मिठाई का भोग लगाया जाता है। 12 बजे राजभोग में पूरा खाना परोसा जाता है पर इस भोग में यह ध्यान रखते हैं कि मिर्च भी कम हो और खाना न तो ज्यादा गर्म हो और न ही ठंडा। साथ ही मिठाई भी रखी जाती है, क्योंकि बच्चों को मिठाई पसंद होती है। शाम 4 बजे उत्थापन के समय जल पिलाया जाता है और मिठाई-फल का भोग लगाते हैं और इस वक्त कुछ खिलौने भी भगवान के समीप रखे जाते हैं। रात में 9 बजे जब भगवान को शयन कराया जाता है, उस वक्त भी दूध का भोग लगाते हैं। शयन के समय भगवान का शृंगार इस भाव से हटाया जाता है कि उन्हें अच्छी नींद आए।
महामंडलेश्वर रामगोपाल दास बताते हैं कि पहले यहां श्रीराम दरबार ही था, लेकिन एक बार गुजरात का भक्त टीकमदास भगवान वामन की मूर्ति लेकर जब जा रहा था तो यहां रात्रि विश्राम के लिए ठहरा। सुबह जब मूर्ति को यहां से उठाने लगा तो वह नहीं उठी। चूंकि श्रीराम उदार हृदय वाले हैं, इसलिए भगवान वामन की मूर्ति को यहां अपना स्थान दिया और खुद समीप स्थापित हो गए। भक्त के नाम पर ही विग्रह को टीकमजी भगवान का नाम मिला और श्रीराम मंदिर होकर भी मुख्य विग्रह के रूप में टीकमजी बीच में विराजित हो गए।