नईदुनिया, जबलपुर ( MP High Court) । हाई कोर्ट में एक याचिका के जरिये नीट पीजी अंतर्गत आठ ब्रांच में सीट बांटने के रवैये पर आपत्ति दर्ज कराई गई थी। याचिकाकर्ता ने एनआरआई कोटे गलत बंटवारे पर सवाल खड़ा किया था। रविवार को अवकाशकालीन विशेष बेंच में मामला सुनवाई के लिए लगा था।
सुनवाई के दौरान तकनीकी वजह से याचिकाकर्ता के वकील विशाल बघेल ने याचिका वापस लेने का आग्रह किया। जिसे स्वीकार कर लिया गया। अधिवक्ता बघेल ने अवगत कराया कि सोमवार को नए सिरे से याचिका दायर करेंगे।
याचिकाकर्ता अरुण कुमार ने नीट पीजी में की आल इंडिया में 7000 रैंक और स्टेट में 260वीं रैंक हासिल की। अच्छी रैंक के बावजूद उसे एक निजी मेडिकल कालेज में जनरल मेडिसिन में एडमिशन नहीं मिल पाएगा।
नियम में स्पष्ट है कि सभी संस्थाओं में विभिन्न श्रेणियों की कोर्स वार रिक्त सीटों की संख्या का प्रकाशन पहले पोर्टल पर किया जाएगा। एक निश्चित समय सीमा आपत्तियां दर्ज कराने हेतु दी जाएगी। लेकिन डायरेक्टोरेट मेडिकल एजुकेशन ने प्राइवेट मेडिकल कालेजों की रिक्त सीटों की संख्या का प्रकाशन 22 तारीख की शाम को किया।
दावे-आपत्तियों का समय न देते हुए सीधे काउंसलिंग प्रारंभ कर दी। चार्ट में ज्यादा मांग वाली आठ ब्रांचों में ही एनआरआई कोटा बांट दिया गया है। नियम के अनुसार निजी मेडिकल कालेजों में एनआरआई कोटे से संबंधित 15 प्रतिशत सीटें सभी पाठ्यक्रमों में आरक्षित होनी चाहिए। लेकिन डीएमई द्वारा जारी एनआरआई कोटे की सीटों के चार्ट से पता चलता है कि 15 प्रतिशत एनआरआई कोटे की सीटों को चुनिंदा आठ पाठ्यक्रमों में बांट दिया गया।
वहीं दूसरे मामले में हाई कोर्ट ने राम जानकी ट्रस्ट मंदिर, नरसिंहपुर की जमीन को खुर्द-बुर्द करने के मामले की गई शिकायत का निराकरण करने कलेक्टर को निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ ने कलेक्टर को जिम्मेदारी सौंपी है कि वे अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करते हुए 60 दिन में अभ्यावेदन का निराकरण करें।
याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी वयोवृद्ध यदुवंश कुमार त्रिवेदी की ओर से अधिवक्ता अजय रायजादा, अंजना श्रीवास्तव व अभिमन्यु सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता के पूर्वजों ने ट्रस्ट बनाकर राम जानकी मंदिर का प्रबंधन और व्यवस्थापन का कार्य शुरू किया था।
याचिकाकर्ता पांच भाई-बहन हैं, जिनमें से याचिकाकर्ता जबलपुर में रहते हैं। वर्ष 2009 में व्यवस्थापत्र बनवाकर छोटे भाई सुरेन्द्र कुमार त्रिवेदी को देखरेख का दायित्व सौंपा था। सुरेन्द्र ने बिना अधिकार नर्मदा डेवलपर से सांठगांठ कर उक्त संपत्ति बेच दी और कलेक्टर की अनुमति से वहां निर्माण भी शुरू कर दिया।
दलील दी गई कि उक्त संपत्ति में सभी भाई-बहन भी सर्वराहकार हैं। इस संबंध में याचिकाकर्ता ने कलेक्टर को अभ्यावेदन देकर उक्त संपत्ति का दुरूपयोग रोकने कार्रवाई की मांग की थी। जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो याचिका दायर की गई।