
Multilayer Farming नईदुनिया प्रतिनिधि, मंडला। बहुमंजिला इमारत के बारे में तो हम सभी ने सुना है और जानते भी हैं। लेकिन आदिवासी जिले में कम ही लोग जानते होंगे कि बहुमंजिला खेती भी होती है और खेती की इस तकनीक पर आदिवासी बाहुल्य मंडला जिले में भी काम शुरू हो गया है। लेकिन यह कोई कपोल कल्पना नहीं है।
जिले में उद्योगिनी संस्था और ओरकल प्रोजेक्ट के जरिए गांव के आदिवासी किसानों को न केवल बहुमंजिला खेती की तकनीक सिखाई जा रही है बल्कि इसके लिए आवश्यक संसाधन भी मुहैया कराए जा रहे हैं। उन्हें आर्थिक और तकनीकी रूप से मजबूत बनाया जा रहा है।
बहुमंजिला खेती को मल्टीलेयर फार्मिंग (Multilayer Farming) भी कहते हैं। इस तकनीक से एक साथ 5 फसलों की बुआई कम लागत में करके किसानों ने 8 गुना ज्यादा आय प्राप्त करना शुरू कर दी है। मल्टीलेयर फार्मिंग की तकनीक किसानों की आय दोगुनी करने में एक अच्छा साधन साबित हो रहा है। यह तकनीक लघु और सीमांत कृषकों के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है।
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बहुमंजिला खेती की इस तकनीक में लकड़ी, बल्ली, बांस की सहायता से मचान संरचना तैयार की जाती है और मचान के ऊपर घास, पत्ता आदि की सहायता से छांव तैयार की जाती है। खेत में मचान की सहायता से एक आंशिक छांव वातावरण तैयार कर एक साथ 4 से 5 फसलों की खेती एक साथ की जाती है।
इसके साथ ही भूमि के अंदर कंद वाली फसल जैसे हल्दी व अदरक की खेती की जा रही है। साथ ही उसी भूमि के ऊपर में हरी पत्ती वाली भाजी जैसे धनिया, लाल भाजी, पालक व गोभी लगा सकते हैं और खेत के मेड़ में बेल वाली फसल जैसे करेला, सेम, बरबट्टी व मचान के ऊपर अधिक फैलने वाली बेल वाली सब्जी जैसे कद्दू, लौकी, कुदंरू की फसल आसानी से खेती की जा रही है।
जानकारी के अनुसार, मल्टीलेयर खेती करने से पानी की बचत भी होती है। किसानों को मुनाफा प्रति इकाई क्षेत्र अधिक मिलता है, जिससे खेत का प्रबंधन आसानी से हो जाता है। यह खेती पानी, उर्वरक और मिट्टी के सकल उपयोग और प्रति इकाई अधिकतम उपज प्राप्त करने पर आधारित एक एकीकृत कृषि प्रणाली है। इसमें एक फसल के लिए आवश्यक उर्वरक एवं सिंचाई से एक ही खेत से एक वर्ष में 4 से 5 फसलों की उपज प्राप्त की जा सकती है।
जब एक फसल को पानी दिया जाता है तो अन्य फसलों को भी मिल जाता है। इस तरह करीब 70 प्रतिशत कम पानी की जरूरत पड़ती है। किसान एक ही भूमि में एक साथ कई फसलें उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे है। इसके साथ ही इस तकनीक से भूमि खरपतवार प्रबंधन आसानी से किया जा रहा है।