
नईदुनिया प्रतिनिधि, मंदसौर। अष्टमुखी भगवान पशुपतिनाथ की मूर्ति का क्षरण रोकने के लिए वज्र लेप का कार्य प्रारंभ हो गया है। यह कार्य इससे 15 साल पहले भी किया गया था। अभी मंगलवार को कोलकाता व दिल्ली से आए आठ विशेषज्ञों की टीम पूरी मूर्ति पर वज्र लेप करेगी। यह कार्य 45 दिनों तक चलेगा। वज्र लेप के लिए मूर्ति को चारों तरफ से कवर कर दिया गया है।
अभी काम चलने तक परदे में छोड़ी गई खिड़कीनुमा जगह से एक मुख के दर्शन होंगे। भक्त भोलेनाथ के दर्शन गर्भगृह के दक्षिण दिशा वाले द्वार से कर सकेंगे।
श्री पशुपतिनाथ महादेव की मूर्ति सैकड़ों वर्षों तक शिवना नदी में रहने के चलते उसमें कई जगह दरारें हो गई थीं तो कुछ मुख क्षरित भी हो गए हैं। इनको ठीक करने के लिए 10 से 15 साल के अंतराल में मूर्ति का वज्र लेप कराया जा रहा है। विशेष रूप से बनाए गए लेप से मूर्ति की दरारों को भरा जाता है।
श्री पशुपतिनाथ महादेव की अष्ट मुखी मूर्ति के नीचे के चार मुख में ज्यादा क्षरण होता रहा है। कई बार ऊपर के मुख में दरार का मामला भी उठता रहा है। हालांकि मुख्य पुजारी सहित अधिकांश लोग कहते रहे हैं कि यह दरार मूर्ति में शुरू से ही हैं। 2008-09 में तत्कालीन कलेक्टर डॉ. जीके सारस्वत ने औरंगाबाद की कंपनी से मूर्ति पर वज्र लेप कराया था, लेकिन वह ज्यादा समय नहीं चल पाया था। 2013 में कलेक्टर शशांक मिश्र ने सुबह 11 बजे बाद जलाभिषेक पर प्रतिबंध लगाया था, जो आज तक लागू है। दिसंबर 2016 में नासिक की कंपनी ने 50 साल तक क्षरण नहीं होने की गारंटी के साथ प्रजेंटेशन दिया था, लेकिन जिम्मेदार कोई निर्णय नहीं ले सके थे।
भूगर्भ विशेषज्ञ डॉ. विनिता कुलश्रेष्ठ ने बताया कि पशुपतिनाथ की मूर्ति हार्ड फिलिशियस सेंड स्टोन (बालू काश्म) से बनी है। पत्थर में कलर वेरिएशन के कारण धारियां हैं। सफेद धारियां क्वार्ड व केलसाइड से मिल कर बनी हैं। जब इस पर पानी गिरता है तो वह क्षरित होती हैं।
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