75th Republic Day: हर्षल गहलोत, नईदुनिया, महू (इंदौर)। महू तहसील के धारनाका क्षेत्र में ग्वालटोली एक ऐसा मोहल्ला है, जहां के हर घर में फौजी हैं। यहां 60 से अधिक घर हैं और 85 से अधिक सैनिक। प्रत्येक घर से कोई न कोई देशसेवा में लगा है। इन परिवारों में से कोई न कोई पाकिस्तान और चीन से 1962, 1965, 1971 और 1999 में हुए कारगिल युद्ध में रहकर अपने देश की रक्षा की है। यहां के सैनिक श्रीलंका और सोमालिया में शांति सेना में भी हिस्सेदार बन चुके हैं। आपरेशन ब्लू स्टार में भी यहां के जवानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नई पीढ़ी भी सेना में सेवा दे रही है।
इसी मोहल्ले के पूर्व सैनिक जयराज यादव ने बताया कि वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध में करीब एक महीने तक शामिल रहे। हम पहाड़ों के बीच की खोह में छिपकर हमला कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने ऊपर से खोह में बम फेंक दिया, जिससे मेरे साथ में खड़े तीन जवान बलिदानी हो गए। वह दृश्य आज भी याद है। इसके बाद भी हमने चढ़ाई करते हुए अपने क्षेत्र को कैप्चर करना शुरू किया। दो जुलाई को हमने सबसे निचले क्षेत्र को कैप्चर किया था।
सज्जन सिंह रियार 1962, 65 और 1971 की लड़ाई में जंग लड़ चुके हैं। वे 1960 में भर्ती हुए थे और दो साल बाद ही पहला युद्ध 1962 में चीन के खिलाफ लड़ा। तीन साल बाद पाकिस्तान से 1965 में हुई जंग में भी श्रेष्ठ प्रदर्शन कर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। इस युद्ध में भारत की विजय होने के बाद उन्हें शासन की ओर से जमीन भी दी गई थी। इसके छह साल बाद 1971 में फिर पाकिस्तान से लड़ाई लड़ी और बांग्लादेश को आजादी दिलाई।
सेना में इलेक्ट्रानिक एंड मैकेनिकल इंजीनियर रहे लक्ष्मीनारायण यादव ने बताया कि वर्ष 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार में शामिल हुए थे। उनका काम मुठभेड़ के पहले हथियारों का निरीक्षण करना था। इस दौरान कुछ जवान भी बागी हो गए थे। वे शराब पीकर सेना पर हमला करने के लिए चंडीगढ़ से जा रहे थे। बीच में हमारा बेस था और वहां रुके। उनके हाव-भाव के कारण मुझे शक हुआ। वे करीब 25 जवान थे। उनके हथियारों के निरीक्षण के दौरान ही बंदूकों में से फायरिंग पिन निकाल दी थी, जिससे वे आगे हमला करने पहुंचे तो उनकी बंदूकें काम नहीं आईं। लक्ष्मीनारायण के पुत्र मेजर संतोष यादव भी सेना में देशसेवा कर रहे हैं।
मनोहरलाल यादव ने बताया कि वे श्रीलंका में गृह युद्ध के दौरान भारतीय शांति रक्षा सेना में करीब 18 महीने तक जाफना में थे। एक बार कंपनी पेट्रोलिंग पर थी, तभी एलटीटी के लोगों ने हमला शुरू कर दिया था। उसमें हमारे 15 लोग बलिदानी हो गए थे। साथी नायक राजेंद्र प्रसाद और हमने हमारे साथियों के शव को ही ढाल बनाकर हमला करना शुरू किया। राजेंद्र ने खड़े होकर एलएमजी से लगातार हमला किया। इस दौरान उसे भी कई गोलियां लगीं, पर हमने सभी को ढेर किया और अपनी जान बचाई। गोलियां लगने से राजेंद्र की शारीरिक स्थिति खराब हो गई और बाद में मानसिक रूप से भी बीमार हो गए।
श्रीराम अहीर, जिन्हें 1965 और 71 के युद्ध में सराहनीय सेवा मेडल के साथ पूरी सर्विस में कई मेडल मिले। - नईदुनिया
पूर्व सूबेदार श्रीराम अहीर ने बताया कि उन्होंने 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया। उनका काम आर्टिलरी पहुंचाना था। उनके बाद उनके चारों पुत्र सुरेश, सुनील, विजय और अजय सेना में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इनमें दो पुत्र अब सेवानिवृत हो गए हैं। भतीजा पृथ्वीराज सेना में आर्डिनरी कैप्टन के पद से सेवानिवृत हुआ। भांजे कैलाश भी सेना में सेवा दे रहे हैं।