-700 साल से अधिक पुराना है मां आंतरी का चमत्कारिक दरबार
- चंद्रावत राजपूतों की कु लदेवी का मंदिर गांधी सागर के जलभराव क्षेत्र में
मनासा। नईदुनिया न्यूज
मां आंतरी का चमत्कारिक मंदिर गांधी सागर के जल भराव क्षेत्र में निर्मित है। देवी मां आंतरी चंद्रावत राजपूतों की कु लदेवी है। मन्नत पूरी होने पर भक्त देवी मां को जीभ अर्पित करते हैं। मान्यता व भक्तों का दावा है कि जीभ अर्पित करने के बाद भक्तों की जीभ स्वतः आ जाती है। अब मन्नत पूरी होने पर कई भक्त चांदी की जीभ भी चढ़ाने लगे हैं।
मनासा नगर से करीब 35 कि लोमीटर दूर आंतरी माता गांव में यह प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पुजारी भारतसिंह राठौड़ बताते हैं कि देवी मां का मंदिर करीब 700 साल से पुराना है। देवी मां का मंदिर आंतरी माता गांव में गांधी सागर के जल भराव क्षेत्र में हैं। मंदिर के एक ओर गांव है और बाकी तीन ओर चंबल नदी का पानी रहता है। देवी मां के दर्शन व पूजन के लिए चैत्र व शारदीय नवरात्र में दूर-दूर से भक्त आते हैं। मप्र-राजस्थान के लोगों की देवी मां के प्रति आगाध आस्था है। पुजारी राठौड़ के अनुसार देवी मां सभी की मुरादें व मन्नतें पूरी करती है। मन्नत पूरी होने पर सन् 1964 में आंतरी माता गांव के ही गुलाब मेघवाल ने जीभ अर्पित की। बाद में उसकी जीभ आ गई। इसके बाद से मंदिर में जीभ अर्पित करने का क्रम शुरू हो गया। इस नवरात्र में भी करीब 4 भक्तों द्वारा जीभ अर्पित करने की बात मंदिर में सामने आई है। अब तक काफी संख्या में लोग देवी मां को जीभ अर्पित कर चुके हैं।
निसंतानता का कष्ट हरती है मां
देवी मां निसंतानता का कष्ट हरती है। देवी मां के मंदिर के पिछले हिस्से में संतान की कामना के साथ महिलाएं उल्टा स्वस्तिक बनाती हैं। मन्नत पूर्ण होने या संतान प्राप्ति होने पर महिलाएं पुनः मंदिर आती हैं और सीधा स्वस्तिक बनाकर देवी मां को धन्यवाद ज्ञापित करती हैं।
दिनभर में देवी मां के तीन रूप
पुजारी और ग्रामीण बताते हैं कि देवी मां के दिनभर में तीन रूप दिखाई देते हैं। सुबह देवी मां बाल्यावस्था में, दोपहर में युवावस्था में और शाम के समय वृद्धावस्था में दर्शन देती है।
गोद आते हैं, उन्हें ही पूजा का मौका
आंतरी माता मंदिर से जुड़ा एक मिथक है कि जो व्यक्ति पुजारी के घर गोद आता है, वही देवी मां की पूजा करता है। पुजारी भारतसिंह राठौड़ बताते हैं कि देवी मां की सेवा व पूजा करने वाले पुजारियों के यहां संतान नहीं होती। अब तक सभी पुजारी गोद आए हुए बच्चे हैं। मैं भी पुजारी नारायणजी राठौड़ के घर गोद आया था।
मंदिर और इतिहास
आंतरी माता के राव सेवाजी खेमा के स्वप्न में मां आंतरी आई थीं। उन्होंने आंतरी माता गांव में विराजित होने की मंशा जताई थी। इसके बाद विक्रम संवत् 1329 में देवी मंदिर के निर्माण की आधारशिला रखी गई। यह मंदिर करीब 3.5 साल की अवधि में विक्रम संवत 1333 में बनकर तैयार हो गया। उस समय मंदिर निर्माण पर करीब 7 हजार 332 रुपए खर्च हुए थे। राव सेवाजी खेमा चंद्रावत राजपूत थे।