नईदुनिया प्रतिनिधि, सतना: केंद्रीय जेल सतना से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक कर्मचारी ने कथित तौर पर फर्जी श्रवण बाधित प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी प्राप्त की। खुलासे के बाद जेल विभाग और प्रशासनिक हलकों में हड़कंप मचा हुआ है। बताया जा रहा है कि संबंधित कर्मचारी पूरी तरह सामान्य है और उसे सुनने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं है, फिर भी उसने खुद को 40 प्रतिशत से अधिक श्रवण बाधित बताकर शासकीय सेवा में नियुक्ति हासिल कर ली।
यह मामला न केवल शासकीय तंत्र की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि फर्जी दस्तावेजों के दम पर सरकारी नौकरियां हथियाने का नेटवर्क कितना सक्रिय है। अब सबकी निगाहें मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि केंद्रीय जेल सतना का यह “श्रवण बाधित अनुदेशक” सच में विकलांग है या फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे नौकरी पाने वाला एक बड़ा धोखेबाज।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, आरोपी कर्मचारी नवनीत सिंह ठाकुर, जो केंद्रीय जेल सतना में बुनाई अनुदेशक (Weaving Instructor) के पद पर पदस्थ है, ने श्रवण विकलांगता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर सरकारी नौकरी हासिल की थी। अब संदेह जताया जा रहा है कि यह प्रमाण पत्र जाली दस्तावेजों के आधार पर जारी किया गया था। विभागीय सूत्रों के मुताबिक, यदि प्रमाण पत्र की जांच कराई जाए तो यह फर्जी साबित हो सकता है।
प्रकरण सामने आने के बाद जेल प्रशासन ने इस पूरे मामले को गंभीरता से लिया है और कहा है कि यदि जांच में प्रमाण पत्र फर्जी पाया गया, तो कर्मचारी के खिलाफ निलंबन एवं विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की सिफारिश भी की जाएगी। अब इस मामले में जिला प्रशासन स्तर पर जांच की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
इस मामले को लेकर पुनीत चतुर्वेदी निवासी आदर्श नगर, सतना ने जिले के कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट को एक लिखित शिकायत सौंपी है। शिकायत में कहा गया है कि नवनीत सिंह ठाकुर पूरी तरह सामान्य है, कभी श्रवण बाधित नहीं रहा। वह किसी श्रवण यंत्र का उपयोग नहीं करता और सामान्य लोगों की तरह बातचीत करता है। इसलिए उसके विकलांगता प्रमाण पत्र की जांच मेडिकल बोर्ड सतना से कराई जाए।शिकायतकर्ता ने यह भी अनुरोध किया है कि जेल के अन्य अधिकारियों व कर्मचारियों से पूछताछ की जाए, जिससे सच्चाई स्पष्ट हो सके।
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जेल प्रशासन और जिला कलेक्टर कार्यालय अब मेडिकल बोर्ड के माध्यम से सत्यापन जांच की तैयारी में जुट गए हैं। यदि जांच में यह प्रमाण पत्र फर्जी पाया जाता है, तो यह मामला धोखाधड़ी और जालसाजी की श्रेणी में आएगा, और आरोपित पर विभागीय कार्रवाई के साथ-साथ कानूनी दंडात्मक कार्रवाई भी संभव है।
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