
संजय कुमार शर्मा, नईदुनिया, उमरिया। नाइट सफारी बंद होने के बाद अब विलेज पर्यटन पर फोकस किया जाएगा। इसके लिए मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व ने अपने स्तर से प्रयास प्रारंभ कर दिया है। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में भी इसके लिए चर्चा शुरू हो गई है।
बांधवगढ़ के फील्ड डायरेक्टर डॉ. अनुपम सहाय का कहना है कि विलेज पर्यटन पर्यटकों की पसंद है और बाहर से आने वाले पर्यटक चाहते हैं कि उन्हें बांधवगढ़ के आसपास के गांव में ठहरने और वहां की संस्कृति की झलक देखने को मिले। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्र में बहुत सी संभावना है। इस पर बीटीआर पहले भी प्रयास कर चुका है। इन प्रयासों को अब और गति दी जा सकती है।
नाइट सफारी बंद होने के बाद पर्यटन के क्षेत्र में नए विकल्प के तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के होमस्टे को विकसित करना शामिल है। बीटीआर के दो गांव-रांछा और डोभा को पर्यटन गांव घोषित भी किया जा चुका है। इनमें होम स्टे की व्यवस्था की गई है। यहां पर्यटक आदिवासियों के साथ ठहर सकते हैं और उनकी संस्कृति से परिचित हो सकते हैं। इनके अलावा भी ऐसे ग्रामों का चयन किया जाएगा, जहां पर होम स्टे की व्यवस्था की जा सके।
स्टे के दौरान पर्यटकों को ग्रामीण परिवेश में रहने की सुविधा के साथ विंध्य के व्यंजन परोसने की दिशा में भी कदम बढ़ाए जा रहे हैं। बांधवगढ़ पहुंचने वाले पर्यटकों को विंध्य के लजीज व्यंजन बरा, मंगौड़ी, रसाज, इंदरहर, दालपूरी, कढ़ी, मेझरी की खीर, अमावट का रस, महुए से बनें लाटा, मौहरी, ब्रेकरी, लड्डू आदि का स्वाद चखने को मिले तो उनका आकर्षण विलेज पर्यटन की तरफ बढ़ेगा। इन व्यंजनों की खास बात यह होगी कि इन्हें गांव की महिलाएं ही बनाएंगी।
बांधवगढ़ टाइगर प्रबंधन द्वारा सबसे पहले जोहिला फाल को विकसित किया गया, जहां पर्यटक अपने निजी वाहन से भी भ्रमण कर सकते हैं और पैदल या साइकिल से भी घूमने जा सकते हैं। बफर में बनाया गया ज्वालामुखी गेट भी विलेज पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बीटीआर का रांछा गांव घने जंगल में बसे होने की वजह से सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
मुंबई से आई पर्यटक मीनांक्षी मिश्रा का कहना है कि मिट्टी की सोंधी खुशबू और लकड़ी की आंच से बने भोजन की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यहां सिलौटी में बनी चटनी और चूल्हे में बने व्यंजन, फाइव स्टार होटलों के भोजन से कई गुना स्वादिष्ट हैं।