
डिजिटल डेस्क: दुनिया भर के वैज्ञानिक समुदाय की उत्सुकता का केंद्र बना अनोखा धूमकेतु 3आई/एटलस की शुक्रवार रात आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences) के टेलीस्कोप से देखा गया। एरीज स्थित 104 सेंटीमीटर संपूर्णानंद ऑप्टिकल टेलीस्कोप में इस अनोखे धूमेकतू की तस्वीरें रूप से कैद हो गई। इसके अवलोकन और अध्ययन के लिए भारत के साथ-साथ विदेशी वैज्ञानिकों का दल एरीज में एकत्रित हुआ।
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जानकारी के अनुसार, यह धूमकेतू हमारे सौर मंडल का नहीं है। इसे विशेष बनाता है इसका इंटरस्टेलर स्रोत, यानी इसकी उत्पत्ति हमारे सौर मंडल से बाहर किसी अन्य तारामंडल में हुई है। जुलाई 2025 में पहली बार पहचाने जाने के बाद विश्व की कई अंतरिक्ष एजेंसियाँ लगातार इसकी गति और संरचना का अध्ययन कर रही हैं।
एरीज परिसर में इस धूमकेतु का अवलोकन करने के लिए भारत सहित जर्मनी से भी विशेषज्ञ पहुंचे। अब तक बाहरी सौरमंडल से आए केवल दो पिंड पहचाने गए थे, और 3आई/एटलस इस श्रेणी का तीसरा आगंतुक है। यह वर्तमान में सूर्योदय से पहले पूर्वी आसमान में थोड़े समय के लिए दिखाई देता है।
एरीज के खगोल विज्ञानी डॉ. वीरेंद्र यादव ने बताया कि जैसे-जैसे यह पिंड सूर्य के समीप आता है, इसकी सतह पर जमी बर्फ तेजी से गैस में बदलने लगती है। इस प्रक्रिया को उर्ध्वपातन कहा जाता है। इसका मार्ग और गति स्पष्ट करते है कि यह हमारे सौरमंडल से संबंधित नहीं है। पृथ्वी के पास से गुजरने के बाद यह धूमकेतु दोबारा कभी नजर नहीं आएगा। हालांकि कुछ अगले कुछ महीनों तक इसे पृथ्वी से देखा जा सकेगा।
वैज्ञानिक डॉ. रवींद्र यादव के अनुसार, 3आई/एटलस के कण सूर्य की किरणों को एक खास ढंग से मोड़ते हैं, इसे प्रकाश का ध्रुवीकरण कहा जाता है। यह परिवर्तन मानव आंख को साधारण रूप में नजर नहीं आता, लेकिन कई पक्षी और कीट प्रजातियां इसे आसानी से देख सकती है। इस प्रभाव को मापने के लिए एरीज में अत्याधुनिक पोलरिमीट्रिक कैमरा लगाया गया है। यह देश में अपने प्रकार का इकलौता उपकरण है।
इस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अभियान में एरीज के डॉ. संतोष जोशी, जर्मनी की डार्टमुंड यूनिवर्सिटी के प्रो. क्रिश्चियन वोहलर, तथा शोधकर्ता शैफाली गर्ग भी शामिल रहे।