एजेंसी, नई दिल्ली: भारत की राजनीति में वंशवाद का दबदबा (Nepotism in Indian Politics) लगातार बढ़ता जा रहा है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के मुताबिक, संसद और विधानसभाओं में बड़ी संख्या में ऐसे प्रतिनिधि हैं जो राजनीतिक परिवारों से आते हैं। यह स्थिति साफ करती है कि लोकतंत्र के मंच पर भी परिवारवादी राजनीति गहरी जड़ें जमा चुकी है।
रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा में 31% सांसद ऐसे हैं जो वंशवादी पृष्ठभूमि से आते हैं, जबकि राज्यों की विधानसभाओं में यह आंकड़ा 20% है। इसका मतलब है कि राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश पर स्थापित राजनीतिक परिवारों का कड़ा नियंत्रण बना हुआ है। वहीं, राज्यों की राजनीति में बाहरी लोगों के लिए थोड़ी जगह जरूर है।
बड़े और काडर आधारित राज्यों जैसे तमिलनाडु और बंगाल में वंशवाद का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है। यहाँ वंशवादी जनप्रतिनिधियों की संख्या क्रमशः 15% और 9% है। इसके उलट छोटे राज्यों जैसे झारखंड (28%) और हिमाचल प्रदेश (27%) में यह प्रभाव कहीं ज्यादा है। इससे यह भी साबित होता है कि मजबूत संगठनात्मक ढांचे वाली पार्टियां वंशवाद को रोकने में अधिक सक्षम होती हैं।
रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला पहलू महिलाओं को लेकर है। वंशवादी पृष्ठभूमि से आने वाली महिला नेताओं का प्रतिशत 47% है, जबकि पुरुषों में यह केवल 18% है। झारखंड में 73% और महाराष्ट्र में 69% महिला जनप्रतिनिधि अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। इसका मतलब है कि राजनीति में महिलाओं की एंट्री आसान जरूर हुई है, लेकिन गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाली पहली पीढ़ी की महिलाओं के लिए रास्ते बेहद कठिन हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले भी कह चुके हैं कि राजनीति में गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि से युवाओं को लाना जरूरी है। उन्होंने एक लाख युवाओं को राजनीति में लाने की बात कही थी। लेकिन ADR की रिपोर्ट बताती है कि इस दिशा में अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
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