
डिजिटल डेस्क। पटना के गांधी मैदान में आयोजित भव्य समारोह में गुरुवार को नीतीश कुमार ने 10वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित कई केंद्रीय नेता मौजूद रहे। नीतीश के अलावा सम्राट चौधरी समेत 26 मंत्रियों ने भी शपथ ली। इसमें एक नाम 79 वर्षीय बिजेंद्र प्रसाद यादव का भी है, जो अब तक एक भी चुनाव नहीं हारे हैं।
उन्होंने इस बार 30 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। उन्हें कुल 108562 वोट मिले। यहां उनकी टक्कर कांग्रेस के मिन्नतुल्लाह रहमानी से थी, जिन्हें 77747 वोट मिले। इस तरह बिजेंद्र प्रसाद यादव 30 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे। इस दिग्गज नेता ने 1990 में पहली बार सुपौल से विधायक निर्वाचित होकर अपने राजनीतिक करियर की यात्रा शुरू की। खास बात यह है कि यह यात्रा आज चौथे दशक में भी मजबूती से जारी है।
1991 में लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री रहते हुए कुछ ही महीनों तक विधायक रहने के बाद उन्हें ऊर्जा राज्य मंत्री बनाया गया। इसके बाद 1995 में उन्होंने एक बार फिर से विधानसभा चुनाव जीता और नगर विकास मंत्री बने। आगे चलकर विधि व ऊर्जा विभाग जैसी अहम जिम्मेदारियां भी संभालीं। 1997 में जनता दल के टूटने पर उन्होंने शरद यादव का साथ चुना, जिसका राजनीतिक नुकसान उन्हें मंत्री पद खोकर उठाना पड़ा। इसके बावजूद 2000 में वे जनता दल यूनाइटेड के टिकट पर फिर से विधानसभा पहुंचे।
2005 का चुनाव जदयू के लिए बेहद अहम साबित हुआ। उस समय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और चुनाव अभियान के मुख्य चेहरे बिजेंद्र प्रसाद यादव थे। उनके नेतृत्व में लड़ी गई इस लड़ाई में एनडीए की सत्ता में वापसी हुई, जिसके बाद उन्हें सिंचाई और ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण विभागों की कमान दी गई।
2010 के बाद बिहार की राजनीति में लगातार बदलते गठबंधनों, महागठबंधन, एनडीए और फिर से महागठबंधन के बीच विजेंद्र प्रसाद यादव की भूमिका लगातार प्रभावी और स्थिर रही। संसदीय कार्य, मद्य निषेध, निबंधन, वित्त, वाणिज्य कर, ऊर्जा, खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण जैसे अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी बार-बार मिलना इस बात का प्रमाण रहा कि सरकारें बदलीं, लेकिन उन पर भरोसा कायम रहा।
2022 में जब जदयू ने राजग छोड़कर महागठबंधन की सरकार बनाई, तब भी विजेंद्र प्रसाद यादव को कैबिनेट में प्रमुख स्थान दिया गया और ऊर्जा व योजना विकास विभाग सौंपा गया। इससे स्पष्ट होता है कि सत्ता में चाहे किसी भी गठबंधन का प्रभाव रहा हो, उनके अनुभव, ईमानदारी और प्रशासनिक दक्षता पर कभी सवाल नहीं उठा।