Shaheedi Diwas 2021: 23 मार्च 1931, यही वो दिन था जब अंग्रेजी हुकूमत ने भारत मां के लाड़ले सपूतों, भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को एक साथ फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था। तीनों क्रांतिकारियों की याद में आज के दिन शहीदी दिवस मनाया जाता है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने तब ‘पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूट बिल’ के विरोध में सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा दे दी गई। आज पूरा देश भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को याद कर रहा है। कोरोना की पाबंदियों के कारण पाबंदियां लगी हैं, तो इंटरनेट मीडिया के जरिए इन्हें याद करने वाले संदेश जारी किए जा रहे हैं। यहां पढ़िए भगत सिंह के जोश जगाने वाले विचार
किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं करनी चाहिए। जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरूपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।
कोई भी व्यक्ति जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए तैयार खड़ा हो उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमे अविश्वास करना होगा और चुनौती भी देना होगा।
किसी भी इंसान को मारना आसान है, परन्तु उसके विचारों को नहीं। महान साम्राज्य टूट जाते हैं, तबाह हो जाते हैं, जबकि उनके विचार बच जाते हैं।
जरूरी नहीं था कि क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो। यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।
आम तौर पर लोग जैसी चीजें हैं उसके आदी हो जाते हैं और बदलाव के विचार से ही कांपने लगते हैं। हमें इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की जरूरत है।
जो व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है उसे हर एक रूढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा तथा उसे चुनौती देनी होगी।
मैं इस बात पर जोर देता हूँ कि मैं महत्त्वाकांक्षा , आशा और जीवन के प्रति आकर्षण से भरा हुआ हूँ। पर मैं ज़रुरत पड़ने पर ये सब त्याग सकता हूँ, और वही सच्चा बलिदान है।
अहिंसा को आत्म-बल के सिद्धांत का समर्थन प्राप्त है जिसमे अंतत: प्रतिद्वंदी पर जीत की आशा में कष्ट सहा जाता है । लेकिन तब क्या हो जब ये प्रयास अपना लक्ष्य प्राप्त करने में असफल हो जाएं ? तभी हमें आत्म -बल को शारीरिक बल से जोड़ने की ज़रुरत पड़ती है ताकि हम अत्याचारी और क्रूर दुश्मन के रहमोकरम पर ना निर्भर करें।
किसी भी कीमत पर बल का प्रयोग ना करना काल्पनिक आदर्श है और नया आन्दोलन जो देश में शुरू हुआ है और जिसके आरम्भ की हम चेतावनी दे चुके हैं वो गुरु गोबिंद सिंह और शिवाजी, कमाल पाशा और राजा खान , वाशिंगटन और गैरीबाल्डी , लाफायेतटे और लेनिन के आदर्शों से प्रेरित है।
इंसान तभी कुछ करता है जब वो अपने काम के औचित्य को लेकर सुनिश्चित होता है , जैसाकि हम विधान सभा में बम फेंकने को लेकर थे।
…व्यक्तियो को कुचल कर , वे विचारों को नहीं मार सकते।
क़ानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक की वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।
क्रांति मानव जाती का एक अपरिहार्य अधिकार है। स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।
मैं एक मानव हूँ और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
इन संदेशों के जरिए भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को करिए नमन
जशन आज़ादी का मुबारक हो देश वालो को
फंदे से मोहब्बत थी हम वतन के मतवालो को
ज़माने भर मे मिलते है आशिक कई
मगर वतन से खूबसूरत कोई सनम नहीं होता
नोटों मे लिपट कर, सोने मे सिमटकर मरे है कई
मगर तिरंगे से खूबसूरत कोई कफ़न नहीं होता
देश के शहीदो को नमन
जय हिन्द जय शहीद दिवस 2021
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लिख रहा हूं मैं अजांम जिसका कल आगाज आयेगा,
मेरे लहू का हर एक कतरा इकंलाब लाऐगा मैं रहूँ या ना रहूँ पर ये वादा है तुमसे मेरा कि,
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा।
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शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा, अमर शहीद भगत सिंह,
सुखदेव व राजगुरु के बलिदान दिवस पर, कोटि-कोटि नमन
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मैं जला हुआ राख नहीं, अमर दीप हूं,
जो मिट गया वतन पर मैं वो शहीद हूं
भारत माता की जय
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शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का यही निशान होगा
देश के शहीदों को शत् शत् नमन
भारत माता की जय
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मिटा दिया है वजूद उनका इनसे भिड़ा है,
देश की रक्षा का संकल्प के लिए जो जवान सरहद में खड़ा है।