
धर्म डेस्क। भारत में कई मंदिर अपनी अनोखी मान्यताओं और रहस्यमयी परंपराओं के कारण विशेष पहचान रखते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में मासिक धर्म के दौरान पूजा-पाठ वर्जित माना जाता है, लेकिन देश में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जहाँ महिलाओं को किसी भी स्थिति में प्रवेश और पूजा की अनुमति है। इन मंदिरों में पूजा से लेकर अनुष्ठान तक की पूरी जिम्मेदारी भी महिलाओं के हाथ में होती है।
कोयंबटूर से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित मां लिंग भैरवी मंदिर अपनी अनोखी परंपरा के कारण प्रसिद्ध है। स्त्री शक्ति का प्रतीक यह मंदिर ईशा फाउंडेशन के परिसर में बना है।
इसकी खास बातें है कि यहाँ पूजा और अनुष्ठान सिर्फ महिलाएँ करती हैं। मासिक धर्म के दौरान भी महिलाओं को पूजा करने की पूर्ण अनुमति है। यहाँ मां की प्रतिमा नहीं बल्कि एक लंबे चपटे पत्थर के रूप में देवी की पूजा होती है। गर्भगृह में पूजा करने वाली महिला पुजारियों को ‘भैरागिनी’ कहा जाता है। मंदिर की दीवारों पर बना त्रिकोण स्त्री-ऊर्जा और सृष्टि के सृजन का प्रतीक माना जाता है।
दक्षिणी केरल का चक्कुलाथुकावु मंदिर महिलाओं की पूजा-परंपरा के लिए जाना जाता है। पोंगल उत्सव के दौरान 10 से 11 दिन तक पूजा सिर्फ महिलाएँ करती हैं। उत्सव के दिन पुरुषों की एंट्री पूर्ण रूप से बैन होती है। इसी वजह से इस मंदिर को ‘महिलाओं का सबरीमाला’ कहा जाता है।
केरल के अलप्पुझा जिले में स्थित यह मंदिर नाग देवताओं को समर्पित है। मंदिर की देखरेख महिलाएँ करती हैं। मुख्य पुजारी के रूप में एक महिला नियुक्त होती है, जिन्हें ‘मन्नारसला अम्मा’ कहा जाता है। मान्यता है कि एक ब्राह्मण महिला की पूजा से नागराज खुश हुए और उन्हें नाग समान पुत्र की प्राप्ति हुई। तब से इस मंदिर की देखरेख महिलाओं द्वारा ही होती आ रही है।
तमिलनाडु के कन्याकुमारी में स्थित कुमारी अम्मन मंदिर भी परंपराओं के लिए विशेष है। यहाँ देवी के कुमारी रूप की पूजा की जाती है। मुख्य गर्भगृह में सिर्फ महिलाएँ ही प्रवेश कर सकती हैं। पुरुषों के लिए मंदिर में कुछ हिस्सों में प्रवेश की अनुमति सीमित है। यह मंदिर ब्रह्मचर्य और संन्यास की दीक्षा के लिए प्रसिद्ध है।