
धर्म डेस्क। सनातन धर्म में भगवान दत्तात्रेय का विशेष महत्व है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय जी का जन्म हुआ था। इसी मौके पर इनकी जयंती मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 4 दिसंबर गुरुवार को आयोजित होगा, जिसे दत्त जयंती के नाम से जाना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संयुक्त अवतार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर कौन हैं दत्तात्रेय, जिनकी तुलना त्रिदेव से की गई है।

मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। यह भक्तों के लिए आध्यात्मिक सिद्धि का अवसर है। इस दिन दत्तात्रेय की आराधना से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान और पूर्वजों का तर्पण करने से पूराने जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और माता अनुसूया के घर हुआ था। वे अपने 24 गुरुओं के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जिनसे उन्होंने शिक्षा ग्रहण की थी।

भगवान दत्तात्रेय सप्तऋषि महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी देवी अनुसूया के पुत्र थे। उनके दो भाई चंद्रदेव (ब्रह्मा के अंश) और दुर्वासा ऋषि (शिव के अंश) भी इसी दिव्य परिवार में जन्मे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय का अवतार अत्रि और अनुसूया की कठोर तपस्या और भक्ति का फल माना जाता है। उन्हें 'गुरुओं का गुरु' और 'आदि गुरु' भी कहा जाता है।
कथा के अनुसार, अत्रि और अनुसूया की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने उन्हें पुत्र रूप में स्वयं को ‘दत्त’ अर्थात् ‘दिया हुआ’ रूप में प्रदान किया।
‘दत्त’ नाम उन्हें विष्णु के अंश से मिला ‘आत्रेय’ महर्षि अत्रि के पुत्र होने का संकेत है।
इसी तरह उनका नाम दत्तात्रेय पड़ा। माना जाता है कि उन्होंने प्रकृति और सृष्टि से 24 गुरुओं से ज्ञान प्राप्त किया।
भगवान दत्तात्रेय को गुरु-परंपरा का प्रथम गुरु, महान योगी और अद्वैत ज्ञान का आधार माना गया है। कहा जाता है कि उन्होंने मनुष्य, पशु-पक्षी और प्रकृति से शिक्षा लेकर उसे संसार को प्रदान किया। उनके प्रमुख शिष्यों में भक्त प्रह्लाद, परशुराम, गोरखनाथ और नागार्जुन का नाम शामिल है।
उन्हें तीन मुख और छह भुजाओं वाले रूप में दर्शाया जाता है। उनके साथ, गाय कामधेनु का प्रतीक, समृद्धि और पूर्णता की निशानी, चार कुत्ते चार वेदों, चार युगों या अस्तित्व की चार अवस्थाओं के प्रतीक है।
भगवान दत्तात्रेय का जन्म माहूर, जिला नांदेड़ (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनका जन्म मार्गशीर्ष पूर्णिमा को माना जाता है। इसी दिन दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। विश्वास है कि इस दिन उनकी पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
कहानी के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव की पत्नियों ने देवी अनुसूया के पतिव्रत की परीक्षा लेने का मन बनाया। उन्होंने त्रिदेवों से अनुरोध किया कि वे अनुसूया की तपस्या को चुनौती दें।
त्रिदेव भिक्षुक का रूप लेकर आश्रम पहुँचे और भोजन की इच्छा जताई। परोसते समय उन्होंने अनुसूया से नग्न होकर भोजन कराने की मांग की।
पहले तो वे चकित हुईं, लेकिन अपने तपोबल से उन्होंने त्रिदेवों को बाल रूप में बदल दिया और उन्हें बच्चों की तरह भोजन कराया।
जब देवियां अपनी भूल का एहसास करके क्षमा मांगने आईं, तो उन्होंने अपने पतियों को वापस पाने का अनुरोध किया। उसी समय, तीनों देवताओं के संयुक्त अंश से भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ और वे अनुसूया के पुत्र बनकर अवतरित हुए।
इसी कारण दत्तात्रेय को त्रिदेवों, ब्रह्मा, विष्णु और शिव का संयुक्त स्वरूप माना जाता है।
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - 4 दिसंबर को सुबह 08 बजकर 37 मिनट पर
पूर्णिमा तिथि समाप्त - 5 दिसंबर को सुबह 04 बजकर 43 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 05 बजकर 14 मिनट से सुबह 06 बजकर 06 मिनट
अभिजित मुहूर्त - कोई नहीं
गोधूलि मुहूर्त - शाम 05 बजकर 58 से शाम 06 बजकर 24 मिनट तक
अमृत काल - दोपहर 12 बजकर 20 मिनट से दोपहर 01 बजकर 58 मिनट तक