Aarti Niyam: सनातन धर्म में पूजा-पाठ के बाद भगवान की आरती का विशेष महत्व बताया गया है। आरती के बिना किसी भी प्रकार की पूजा, अनुष्ठान को पूरा नहीं माना जाता है। आरती किसी भी पूजा का अभिन्न हिस्सा है। शास्त्रों में आरती से जुड़े कई प्रकार के नियम और समय बताए गए हैं। भगवान की आरती ब्रह्म मुहूर्त से लेकर मध्य रात्रि तक की जाती है। आइए जानते हैं भगवान की आरती करने के आवश्यक नियम
सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख की तरफ एक बार और सिर से लेकर चरणों तक सात बार आरती उतारी जाती है। इस क्रम में आरती 14 बार घुमाई जाती है।
सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार आरती संपूर्ण होने के बाद भी कभी भी दीपक को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। वहीं, आरती से पूर्व और पश्चात थाली को किसी ऊंचे स्थान पर रखना चाहिए। आरती का दीप प्रज्वलित करने से पहले हाथों को अवश्य धोना चाहिए।
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पूजा पाठ में देवी-देवताओं की आरती करने के बाद जल से आचमन करवाना आवश्यक माना गया है। ऐसा करने के लिए दीपक को रखकर पुष्प या फिर पूजा वाले चम्मच से थोड़े सा जल लेकर दीपक के चारों ओर दो बार घुमाकर जल को धरती में छोड़ दें।
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सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु कहते हैं कि जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है, उसे स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है। स्कंद पुराण के अनुसार यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की संपूर्ण विधि नहीं जानता, लेकिन भगवान की हो रही आरती में श्रद्धा पूर्वक शामिल होता है तो उसकी पूजा स्वीकार होती है।
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