
धर्म डेस्क: नरसिंह भगवान, श्रीहरि विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं। भगवान ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और अत्याचारी हिरण्यकश्यप के वध के लिए अर्ध-सिंह और अर्ध-मनुष्य रूप धारण किया था। उनका यह रूप अत्यंत उग्र माना जाता है। आज हम आपको नरसिंह भगवान से जुड़े एक ऐसे अद्भुत मंदिर के बारे में बता रहे हैं, जहां साल में केवल एक बार भगवान के वास्तविक स्वरूप के दर्शन होते हैं।
सिंहाचलम मंदिर विशाखापट्टनम से लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर, सिंहाचल पर्वत पर स्थित है। ‘सिंहाचलम’ नाम ‘सिंह’ और ‘अचल’ शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है शेर का पर्वत। यहां भगवान नरसिंह की प्रतिमा पर मोटी चंदन की परत चढ़ाई जाती है, जिसे उनके उग्र स्वभाव को शांत रखने का प्रतीक माना जाता है।
साल में एक बार अक्षय तृतीया के दिन इस चंदन की परत को हटाया जाता है। इसी विशेष अवसर को ‘चंदनोत्सव’ कहा जाता है और इस दिन भगवान के ‘निजरूप दर्शन’ का सौभाग्य मिलता है।
मान्यता के अनुसार, जब भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया, तो उनका क्रोध अत्यधिक बढ़ गया था। प्रह्लाद जी ने उनसे शांत होने की प्रार्थना की। भक्त की विनती स्वीकार करते हुए भगवान नरसिंह सिंहाचल पर्वत पर शांत स्वरूप में प्रकट हुए। माना जाता है कि प्रह्लाद ने इसी स्थान पर मंदिर की स्थापना करवाई।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान ने स्वयं प्रह्लाद से कहा कि वे वर्ष भर चंदन से ढके रहेंगे ताकि उनका उग्र रूप नियंत्रण में रहे।
सिंहाचलम मंदिर में भगवान नरसिंह, देवी लक्ष्मी के साथ विराजित हैं। यहां भगवान नरसिंह की प्रतिमा सौम्य मुद्रा में स्थापित है, जो अन्य नरसिंह मंदिरों में दुर्लभ है। अक्षय तृतीया और नृसिंह जयंती के अवसर पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।