
धर्म डेस्क: तिरुपति बालाजी मंदिर, जिसे श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर भी कहा जाता है, भगवान विष्णु का प्रसिद्ध धाम है। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुमला पर्वत पर स्थित यह मंदिर (Tirupati Balaji Mandir) हिंदू धर्म के सबसे धनी और पूजनीय मंदिरों में से एक है। मान्यता है कि कलयुग में भगवान विष्णु इसी स्थान पर निवास करते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।

यहां भक्त अपने बालों का दान करते हैं, जिसे "मुण्डन" या "बाल अर्पण" कहा जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसके पीछे एक गहरी पौराणिक कथा है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार विश्व कल्याण हेतु एक महायज्ञ का आयोजन हुआ। प्रश्न उठा कि इस यज्ञ का फल किस देवता को समर्पित किया जाए। इस निर्णय का दायित्व ऋषि भृगु को सौंपा गया। वे सबसे पहले ब्रह्मा जी और फिर भगवान शिव के पास गए, लेकिन उन्हें दोनों ही अनुपयुक्त लगे। अंततः वे भगवान विष्णु से मिलने बैकुंठ धाम पहुंचे।

उस समय विष्णु जी विश्राम कर रहे थे और उन्हें ऋषि भृगु के आगमन का पता नहीं चला। इसे ऋषि भृगु ने अपमान समझा और क्रोधित होकर विष्णु जी के वक्ष पर ठोकर मार दी। विष्णु जी ने विनम्रता से ऋषि का पैर पकड़ लिया और पूछा, "हे ऋषिवर, आपके पैर में चोट तो नहीं लगी?” यह देखकर भृगु को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने यज्ञफल विष्णु जी को अर्पित करने का निर्णय लिया।
इस घटना से मां लक्ष्मी अत्यंत दुखी हुईं। उन्हें लगा कि विष्णु जी ने उनका अपमान सहन कर लिया। क्रोध में आकर वे बैकुंठ धाम छोड़ पृथ्वी पर आ गईं और पद्मावती के रूप में जन्म लिया। विष्णु जी ने भी श्रीनिवास के रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया। दोनों के विवाह के समय, भगवान विष्णु ने कुबेर देव से धन उधार लिया और वचन दिया कि कलियुग की समाप्ति तक वह ब्याज सहित यह ऋण चुका देंगे।
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इसी कथा से बाल दान की परंपरा की शुरुआत हुई। भक्त मानते हैं कि बाल अर्पण करके वे भगवान विष्णु के ऋण को चुकाने में सहयोग करते हैं। यह दान अहंकार त्याग और भक्ति समर्पण का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से बाल दान करता है, उसे भगवान वेंकटेश्वर 10 गुना आशीर्वाद देते हैं और उस पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
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