डिजिटल डेस्क: वामन अवतार, भगवान विष्णु के दशावतारों में पांचवां अवतार (Vishnu Vamana Avatar) है। यह अवतार धर्म की पुनः स्थापना और अहंकार के दमन के लिए हुआ। श्रीमद्भागवत पुराण और वामन पुराण के अनुसार, इस अवतार का मुख्य उद्देश्य दैत्यराज बलि को उसकी सीमा का ज्ञान कराना और देवताओं को उनका खोया हुआ अधिकार वापस दिलाना था।
दैत्यराज बलि, महान भक्त प्रह्लाद के पौत्र और विरोचन के पुत्र थे। वे एक परोपकारी, शक्तिशाली और दानवीर राजा के रूप में प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने तप और बल के कारण देवताओं को पराजित कर इंद्रलोक पर अधिकार कर लिया था। देवमाता अदिति अपने पुत्रों की इस दशा से दुखी होकर भगवान विष्णु की कठोर तपस्या करने लगीं। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में जन्म लेकर देवताओं को उनका अधिकार पुनः लौटाएंगे।

समय आने पर, भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया। जब राजा बलि नर्मदा नदी के तट पर एक भव्य यज्ञ कर रहे थे, तब भगवान वामन एक छोटे ब्राह्मण बालक के रूप में उनके यज्ञ स्थल पर पहुंचे। वामन के तेजस्वी स्वरूप को देखकर राजा बलि ने उनका सम्मान किया और उनसे इच्छानुसार वर मांगने को कहा।
वामन ने मुस्कुराते हुए केवल तीन पग भूमि मांगी। यह सुनकर दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने बलि को चेताया कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं, जो देवताओं के लिए तुम्हारी परीक्षा लेने आए हैं। किंतु दानवीर बलि ने अपनी प्रतिज्ञा निभाते हुए तीन पग भूमि का दान देने का संकल्प ले लिया।
प्रतिज्ञा पूरी होते ही वामन का स्वरूप विराट हो गया। पहले पग में उन्होंने संपूर्ण पृथ्वी लोक को नापा, दूसरे पग में स्वर्ग लोक सहित पूरा ब्रह्मांड। जब तीसरे पग के लिए स्थान शेष नहीं रहा, तो बलि ने स्वयं अपना सिर आगे कर दिया, ताकि भगवान उनका वचन पूरा कर सकें।
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भगवान विष्णु बलि के इस त्याग और दानशीलता से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का स्वामी बना दिया। साथ ही उन्होंने वरदान दिया कि वे सदा उनके साथ रहेंगे। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर धर्म की रक्षा की, देवताओं को उनका स्थान लौटाया और दैत्यराज बलि को मोक्ष का मार्ग दिखाया।
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