
धर्म डेस्क। श्रीमद्भागवत गीता (Bhagavad Gita) सनातन धर्म का अत्यंत पवित्र और ज्ञानपूर्ण ग्रंथ है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को वह दिव्य उपदेश दिया, जिसने न केवल उनकी दुविधा दूर की बल्कि आने वाली पीढ़ियों को जीवन जीने का मार्ग भी दिखाया। माना जाता है कि गीता का यह उपदेश मोक्षदा एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में दिया गया था।
कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों की सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं और युद्ध शुरू होने ही वाला था। ठीक उसी समय अर्जुन अपने सामने गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अपने ही सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो गए। द्वापर युग के अंत में, इसी निर्णायक क्षण पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया।

अर्जुन मोह और करुणा से भर गए थे। उन्होंने धनुष नीचे रख दिया और युद्ध करने से साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि राज्य पाने के लिए अपने ही बंधुओं का वध करना पाप होगा। अर्जुन की यह मानसिक स्थिति देखकर भगवान कृष्ण ने उन्हें उठाया और जीवन, कर्तव्य और धर्म का गूढ़ ज्ञान देना शुरू किया।
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि यह युद्ध महज सत्ता के लिए नहीं, बल्कि धर्म की रक्षा के लिए है। क्षत्रिय होने के नाते अर्जुन का कर्तव्य अधर्म के खिलाफ खड़े होना था। भगवान ने कहा 'फल की इच्छा त्यागकर कर्म करना ही श्रेष्ठ है।' यही संदेश आगे चलकर कर्मयोग का मूल बना।
श्रीकृष्ण ने बताया कि आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। शरीर नश्वर है, पर आत्मा शाश्वत है। इसलिए मृत्यु मात्र शरीर परिवर्तन है। अर्जुन की शंका दूर करने और उन्हें अपने वास्तविक दिव्य स्वरूप का एहसास कराने के लिए भगवान कृष्ण ने अपना विराट रूप भी प्रकट किया।