Chanakya Niti: ‘पुत्र चंद्रमा के समान हो, तारों जैसा नहीं’, जानें आचार्य चाणक्य ने क्यों कहीं ये बात
Chanakya Niti आचार्य चाणक्य ने कहा है कि सैकड़ों गुणरहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान पुत्र का होना अच्छा है
By Sandeep Chourey
Edited By: Sandeep Chourey
Publish Date: Tue, 09 May 2023 09:17:24 AM (IST)
Updated Date: Tue, 09 May 2023 10:42:25 AM (IST)

Chanakya Niti । आचार्य चाणक्य ने जीवन दर्शन को विस्तार से समझाया है। आचार्य चाणक्य ने बताया कि कि एक व्यक्ति को अपने जीवन में किस प्रकार का पुत्र बनना चाहिए। पुत्र में किन-किन गुणों का होना बेहद जरूरी है। यहां इन श्लोकों में आचार्य चाणक्य ने विस्तार से जिक्र किया है -
वरमेको गुणी पुत्रो निर्गुणैश्च शतैरपि।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः ।।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि सैकड़ों गुणरहित और मूर्ख पुत्रों के बजाय एक गुणवान और विद्वान पुत्र का होना अच्छा है क्योंकि हजारों तारों की अपेक्षा एक चंद्रमा से ही रात्रि प्रकाशित होती है। आचार्य चाणक्य ने कहना है कि सैकड़ों मूर्ख पुत्रों की अपेक्षा एक विद्वान और गुणों से युक्त पुत्र से ही पूरे परिवार का कल्याण कर सकता है। रात के समय जिस प्रकार आकाश में हजारों तारे दिखाई देते हैं लेकिन उससे अंधकार दूर होने में सहायता नहीं मिलती, लेकिन एक चंद्रमा की रोशनी ही काफी शीतलता देती है। आचार्य की दृष्टि में संख्या नहीं गुण का विशेष स्थान था। इसलिए माता-पिता को अपने पुत्र में गुण विकसित करना चाहिए।
मूर्खश्चिरायुर्जातोऽपि तस्माज्जातमृतो वरः।
मृतः स चाऽल्पदुःखाय यावज्जीवं जडो दहेत् ॥
आचार्य चाणक्य ने एक अन्य
श्लोक में पुत्र के बारे में कहा है कि दीर्घ आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र ज्यादा श्रेष्ठ होता है क्योंकि पैदा होते ही मर जाने वाला पुत्र सिर्फ कुछ ही समय के लिए दुख का कारण बनता है, लेकिन लंबी आयु वाला मूर्ख पुत्र जीवन भर दुख देता है।
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि जन्म लेते ही यदि संतान की मृत्यु हो जाती है, तो माता-पिता निराशा के अंधकार में डूब जाते हैं। भविष्य में इस मृत संतान को लेकर कोई सुख-दुख की उम्मीद नहीं रहती है, लेकिन यदि पुत्र मूर्ख हो तो माता-पिता की आशा के टुकड़े-टुकड़े करता रहता है। इस दुख से पहला दुख ज्यादा ठीक माना जा सकता है।
किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्री न गर्भिणी।
कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान्न भक्तिमान्।।
आचार्य चाणक्य ने यहां इस श्लोक में बताया है कि कैसे दूध न देने वाली और गर्भ न धारण करने वाली गाय से कोई लाभ नहीं होती है, उसी प्रकार यदि पुत्र भी विद्वान और माता-पिता की सेवा न करें तो ऐसे पुत्र का कोई लाभ नहीं होता है। कोई भी व्यक्ति ऐसी गाय को पालना पसंद नहीं करता है, जो न तो दूध देती हो और न ही गर्भ धारण करने के योग्य हो। इसी प्रकार ऐसे पुत्र से भी कोई लाभ नहीं, जो न तो पढ़ा- लिखा हो और न ही माता-पिता की सेवा करता हो।
डिसक्लेमर
'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।'