Chanakya niti। हर व्यक्ति को हमेशा यह सीख दी जाती है कि अच्छे लोगों की संगति करना हमेशा फायदेमंद होता है। आचार्य चाणक्य ने भी अपने ग्रंथ ‘चाणक्य नीति’ में इस बारे में विस्तार से जिक्र किया है। आचार्य चाणक्य ने मुताबिक, अच्छे लोगों की संगति ही हमें सद्पुरुष बनाती है।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक, जिस प्रकार बिना गंध वाली मिट्टी में फूलों के संसर्ग से उसमें गंध आ जाती है, इसी प्रकार स्वभाव से जो व्यक्ति गुण ग्रहण करने की इच्छा रखता है, वह सद्गुणों से संपन्न व्यक्ति के संपर्क में आकर उससे अच्छे गुण ग्रहण कर लेता है।
आचार्य चाणक्य के मुताबिक, मिट्टी में अपनी एक विशेष गंध होती है, परंतु जिन क्यारियों में विशेष सुगंधित फूल उगाए जाते हैं, उन फूलों के संसर्ग के कारण उस मिट्टी में भी एक विशेष प्रकार की गंध पैदा हो जाती है। वन में सुगंधित पुष्पों से लदा हुआ वृक्ष सारे वन को अपनी सुगंध से महका देता है। उसी प्रकार विद्वान् व्यक्ति के संपर्क से ही मनुष्य सद्गुणी बन सकता है।
आचार्य चाणक्य ने आगे इस श्लोक में कहा है कि जैसे चांदी सोने के साथ मिलने पर सोना बन जाती है, चांदी नहीं रहती। इसी प्रकार निर्गुणी व्यक्ति गुणवान् व्यक्ति के पास रहकर गुणी बन जाता है। आभूषण बनाते समय सोने में चांदी का मिश्रण किया जाता है। चांदी के मिश्रण से सोने में कुछ कठोरता आ जाती है परंतु सोने में मिली हुई चांदी को सोना ही समझा जाता है। चांदी का अपना रूप समाप्त हो जाता है। इस सूत्र में भी चाणक्य ने सज्जन पुरुषों के साथ सत्संग से होने वाले लाभ के संबंध में लिखा है।
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