
धर्म डेस्क, इंदौर। Jain Dharm Facts: जैन धर्म में कई तरह की प्रथाएं हैं, जिनका अपना महत्व है। जैन धर्म के अनुयायी दो पंथों में बंटे हुए हैं। कुछ श्वेताबंर को, तो कुछ दिगंबर को मानते हैं। दोनों ही पंथों के अनुयायी बड़े ही श्रद्धापूर्वक इन प्रथाओं को मानते हैं। श्वेताबंर और दिगंबर में एक अंतर होता है। श्वेताबंर को मानने वाले शरीर पर सफेद कपड़ा पहनते हैं। दिगंबर को मानने वाले शरीर को नग्न ही रखते हैं। इस तरह की भी मान्यता है कि जैन धर्म में साधु-साधवी नहाते नहीं है। फिर भी उनकी पवित्रता बनी रहती है। इस प्रथा को समझने की कोशिश करते हैं।
जैन साधु या साधवी वैसे तो कई तरह के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, लेकिन इनमें से एक नियम है कभी न नहाने वाला। वह चाहे कितनी भी ठंड हो या गर्मी शरीर पर पानी नहीं डालते हैं। जैन धर्म में साधु या साधवी केवल गीले कपड़े से ही अपने शरीर को पोंछते हैं। ऐसा करने से ही यह माना जाता है कि तन शुद्ध या पवित्र हो जाता है।

जैन धर्म में साधु या साधवी का यह मानना होता है कि शरीर की शुद्धता से ज्यादा मन का शुद्ध होना बहुत जरूरी है। आपके मन में सात्विक विचार है, तो आपका शरीर बिना पानी डाले ही शुद्ध हो जाएगा। यही कारण है कि जैन धर्म में साधु या साधवी स्नान स्नान करने को महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं।
दूसरा कारण हमारे शरीर पर मौजूद सूक्ष्म जीवों का है। साधु या साधवी का मानना होता है कि हमारे शरीर पर अनगिनत सूक्ष्म जीव रहते हैं। हमारे स्नान करने से वह मर जाते हैं। अब चूंकि जैन धर्म में हिंसा का कोई स्थान नहीं है, इसलिए वह स्नान नहीं करते हैं।
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