Surya Grahan 2020 Timings in India: सूर्य ग्रहण खत्म हो चुका है। इस ग्रहण को भारत सहित दुनिया के कई देशों में देखा गया। 2020 का पहला सूर्य ग्रहण (solar eclipse) आज यानी साल के सबसे बड़े दिन 21 जून रविवार को शुरू हुआ। यह दोपहर 2 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हुआ। इस दौरान आसमान में सूर्य का घेरा एक चमकती अंगूठी की तरह नजर आया। इस ग्रहण का मध्य 12:10 के आसपास था। इसमें सूर्य एक वलय/फायर रिंग/चूड़ामणि के रूप में नजर आया। आज भारत में लखनऊ, पटना, जयपुर, दिल्ली, भोपाल, देहरादून और चंडीगढ़ यानी उत्तर भारत के लोगों ने पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा। देश के अलग शहरों से सूर्य ग्रहण की तस्वीरें आ रही हैंं। इसके बाद अगला ग्रहण दिसंबर में लगेगा। आइये जानते हैं कल लगने वाला सूर्य ग्रहण भारत के किन शहरों में, कितनी बजे और कितनी देर तक नज़र आएगा और इसकी क्या खासियत है। इससे जुड़ी सारी जानकारियां यहां पढ़ें।
सूर्य ग्रहण का सूतक, स्पर्श एवं मोक्ष का समय Sutak time of Surya Grahan
सूतककाल 12 घंटे पूर्व शनिवार रात 10ः14 बजे शुरू हो जाएगा। ग्रहण 21 जून रविवार को सुबह 10ः14 बजे से शुरू होगा। मध्यम 12ः14 बजे पर व मोक्ष दोपहर में 1ः38 पर होगा। दोपहर 2 बजे तक मंदिरों के पट बंद रहेंगे। इस ग्रहण की कुल अवधि 3 घंटे 25 मिनट की रहेगी। यह अधिकांश भू-मंडल पर दिखाई देगा। इसके बाद मौजूदा वर्ष के अंत में एक और सूर्य ग्रहण होगा।
जानिये इस सूर्य ग्रहण की विशेषताएं Key Points of this solar eclipse
आषाढ़ कृष्ण पक्ष अमावस्या रविवार 21 जून रविवार को सूर्य ग्रहण पड़ेगा। पंडितों व ज्योतिषियों के मुताबिक यह खंडग्रास व साल का पहला सूर्य ग्रहण होगा, जोकि कंकणाकृति खंड ग्रास सूर्य ग्रहण मृगशिरा एवं आद्रा नक्षत्र में रहेगा। सूर्य ग्रहण का ज्यादा असर मिथुन राशि के जातकों पर पड़ेगा। ज्योतिषाचार्य विनोद रावत ने बताया कि इस बार सूर्य ग्रहण मृगशिरा व आद्रा नक्षत्र और मिथुन राशि पर पड़ रहा है। इस कारण मिथुन राशि वालों को यह ग्रहण विशेष कष्टदायक होगा। वहीं शासन-प्रशासन पर यह ग्रहण शुभ नहीं है, क्योंकि सूर्य प्रशासन का प्रतिनिधि माना जाता है। जब-जब सूर्य एवं चंद्र ग्रहण पड़ते हैं तो उनका दीर्घकालीन प्रभाव विसर्ग राजनीति पर भी दिखता है। ग्रहण के समय 6 ग्रह बुध, शुक्र, गुरु, शनि, राहु, केतु वक्री रहेंगे। मिथुन राशि पर सूर्य बुध, राहु, चंद्र की युक्ति रहेगी जो कि अशुभ मानी जाती है।
दो चंद्रग्रहण के बीच पड़ा सूर्य ग्रहण
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला के अनुसार इससे पहले चूड़ामणि सूर्य ग्रहण का महायोग 870 साल पहले आया था। इस ग्रहण के 15 दिन पहले चंद्रग्रहण पड़ा था और 15 दिन बाद फिर चंद्र ग्रहण पड़ेगा। इन दोनों ग्रहणों के बीच सूर्य ग्रहण पड़ रहा है। इस साल 2020 की सबसे बड़ी खगोलीय घटना 21 जून को होने जा रही है। 21 जुलाई 2009 के बाद 21 जून को सबसे अधिक समय तक लगभग साढ़े तीन घंटे तक सूर्य ग्रहण देखने को मिलेगा। ग्रहण के दौरान सूर्य का लगभग 88 प्रतिशत भाग चंद्रमा द्वारा ढंक लिया जाएगा।
क्या होता है चूड़ामणि योग
बोरियाकलां स्थित शंकराचार्य आश्रम के ब्रह्मचारी डॉ.इंदुभवानंद महाराज के अनुसार रविवार को खग्रास सूर्यग्रहण हो रहा है, जो पूरे भारत में दिखाई देगा। जब रविवार को सूर्यग्रहण होता है, तब चूड़ामणि योग बनता है।
रविग्रहः सूर्यवारे सोमे सोमस्तथा।
चूड़ामणिरिति ख्यातस्तत्रदत्तमनन्तकम॥'
अर्थात सोमवार को चंद्रग्रहण और रविवार को सूर्यग्रहण होने से चूड़ामणि योग बनता है, जो दान-पुण्य और जप के लिए अनंत गुना पुण्य फल प्रदान करता है।
ग्रहण का समय
ग्रहण का प्रारंभ - सुबह 10.33 से
ग्रहण का मध्यकाल - दोपहर 12.11 तक
ग्रहण का मोक्ष - दोपहर 2.04 बजे
1933 में लगा था इस तरह का वलयाकार सूर्य ग्रहण
जानकारों के मुताबिक इस तरह का वलयाकार सूर्य ग्रहण 21 अगस्त 1933 को लगा था। 21 जून के बाद यह 21 मई 2034 को लगेगा। ज्योतिर्विद् पं. आनंद शंकर व्यास के अनुसार इसके फल के रूप में कहीं-कहीं वर्षा, कहीं रोग-भय के अलावा अन्ना का लाभ भी बताया गया है। यह ग्रहण मृगशिरा नक्षत्र, मिथुन राशि पर हो रहा है। सूर्य व राहु मृगशिरा नक्षत्र में रहेंगे। मृगशिरा नक्षत्र का स्वामी मंगल है। मंगल मीन राशि में शनि की दृष्टि में है।
Ring of Fire सूर्य के पेट में समा जाएगा चंद्रमा
21 जून को चंद्रमा सूर्य के पेट में समा जाएगा। इसके चलते रिंग ऑफ फायर का दृश्य नजर आएगा। राम श्रीवास्तव, खगोल शास्त्री ने बताया इस दृश्य को खुली आंखों से नहीं देखें। इस नजारे को देखने के लिए फिल्टर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे आप अपनी आंखों को सूर्य की पराबैंगनी किरणों से सुरक्षित रख सकते हैं। इस दौरान तापमान कुछ कम होगा और पक्षी भ्रमित हो जाएंगे।
नंगी आंखों से भूलकर भी ना देखें ग्रहण, काला चश्मा भी इस्तेमाल ना करें
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि लोग ग्रहण के दौरान नंगी आंखों से सूर्य की ओर न देखें। एक्सरे फिल्म और साधारण काले चश्मे से देखने पर भी आंखों को नुकसान हो सकता है। पानी में सूर्य का प्रतिबिंब देखने से भी आंखें खराब होने का खतरा है। इस बार में दिल्ली और मुंबई स्थित नेहरू तारामंडल से लोगों को जानकारी दी गई है। दिल्ली स्थिति नेहरू तारामंडल ने लोगों को विशेष चश्मे भी बांटे गए हैं, जिनकी मदद से वे सूर्य ग्रहण के गवाह बन सकते हैं। इसके अलावा मिरर इमेज से भी सूर्य ग्रहण देखा जा सकता है। वहीं ज्योतिष के अनुसार Surya Grahan के बाद का समय भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। जानिए सूर्य ग्रहण के बाद क्या करना चाहिए।
ग्रहण समाप्त होने के बाद यह करें
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, Surya Grahan के दौरान दान करने से लाख गुना पुण्य मिलता है। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि सूर्य ग्रहण खत्म होने के बाद सबसे पहले स्नाना करना चाहिए। यदि नदी में स्नान करने का मौका मिले तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता। इसके बाद अपने घर के मंदिर में प्रवेश करें और भगवान को स्नान करवाएं। घर में गौमूत्र का छिड़काव करें। भगवान को जिस जल से स्नान करवा रहे हैं, उसमें गंगा जल मिला लें। सभी मूर्तियों को अच्छी तरह मंत्रोच्चार करते हुए स्नान करवाएं।
ग्रहण काल के बाद ऐसी हो दिनचर्या
इसके बाद ही रसोई घर में प्रवेश करें। वहां रखी सभी चीजों पर भी पवित्रीकरण मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें। Surya Grahan के दौरान किसी चीज का सेवन न करें। वहीं Surya Grahan के बाद पूरी शुद्धता के साथ भोजन बनाए और ब्राह्मणों को खिलाएं या दान करें। इससे पुण्य मिलता है। घर के आंगन में तुलसी का पौधा है, तो उसे भी शुद्धिकरण के बाद जल चढ़ाएं। गाय को रोटी खिलाने से भी पुण्य मिलता है। इसके अलावा ज्योतिष में बताया गया है कि राशि के हिसाब से कौन-कौन सी वस्तुएं दान करने से पुण्य मिलता है। वैसे अनाज के साथ ही तील और वस्त्र दान करने का बड़ा महत्व है।
Surya Grahan के बाद इन बातों का रखें ध्यान
सूर्य ग्रहण के बाद बिना स्नान किए पूजा घर या रसोई घर में प्रवेश ना करें। सूर्य ग्रहण की काली छाया से भगवान को बचाने के लिए जो पर्दा किया है, उसे स्नान के बाद ही खोल लें। संभव हो तो स्नान के तक्काल बाद पूजा घर समेत पूरे घर में गौमूत्र, गंगा जल के मिश्रण से छिड़काव करें। स्नान के बाद पहले भगवान की पूजा करें, यशाशक्ति दान करें और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करें।
खास बातें
- ग्रहण के सूतक एवं ग्रहणकाल में स्नान, दान, जप-पाठ, मंत्र स्रोत पाठ, मंत्र सिद्घि, ध्यान, हवनादि, शुभ कार्यों का संपादन करना कल्याणकारी होता है।
- झूठ, कपटादि, बेकार की बातें, मल-मूत्र त्याग, नाखून काटने से बचें
- वृद्घ, रोगी, बालक एवं गर्भवती को भोजन, दवाई लेने में कोई दोष नहीं होता है।
- धार्मिक ग्रंथ का पाठ करते हुए प्रसन्न रहें।
- दूध,दही, अचार, चटनी, मुरब्बा में तुलसी का पत्ता, कुश रखें।
प्राकृतिक आपदा की संभावना
ग्रहण के अशुभ प्रभाव से कीटाणुयुक्त महामारी फैलने, अतिवृष्टि, ओला, बाढ़, तूफान, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं की संभावना है।
900 साल बाद लगने जा रहा है यह दुर्लभ ग्रहण
21 जून का सूर्य ग्रहण बहुत दुर्लभ बताया जा रहा है। जिस तरह का यह ग्रहण है वैसा 900 साल बाद घटित होगा। ग्रहण के दौरान सूर्य वलयाकार की स्थिति में केवल 30 सेकंड की अवधि तक ही रहेगा। इसके चलते सौर वैज्ञानिक इसे दुर्लभ बता रहे हैं। ग्रहण के दौरान सूर्य किसी छल्ले की भांति नजर आएगा। उत्तराखंड के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के सीनियर सांइटिस्ट व पूर्व निदेशक डॉ. वहाबउद्दीन का कहना है कि ग्रहण तो एक अद्भुत संयोग है। इस बार के सूर्यग्रहण में जो स्थिति बनने जा रही है, उसी ने इसे दुर्लभ ग्रहणों में शामिल किया है।
ग्रहण में इन सावधानियों का ध्यान रखें
बहराइच, उत्तर प्रदेश के पं अनन्त पाठक बताते हैं कि हिंदू धर्म के अनुसार ग्रहण के दौरान सूतक एक समयावधि होती है, जिसे अशुभ माना जाता है और इसलिए इस दौरान कई कार्यों को वर्जित माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहण का सूतक वृद्ध, बच्चों और रोगियों पर मान्य नहीं होता है।
ग्रहण सूतक में वर्जित कार्य:-
नया कार्य प्रारंभ करना, भोजन बनाना, खाना, मल-मूत्र, देवी-देवताओं की मूर्ति और तुलसी के पौधे का स्पर्श।दाँतों की सफ़ाई, बालों में कंघी आदि।
ग्रहण सूतक में ये कार्य अवश्य करें:-
ध्यान, भजन, ईश्वर की आराधना और व्यायाम करें। सूर्य ग्रहण में सूर्य से संबंधित चन्द्र ग्रहण में चन्द्र से संबंधित मंत्रों का जप करें।ग्रहण समाप्ति के बाद घर की शुद्धिकरण के लिए गंगाजल का छिड़काव करें।ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान के बाद सप्तधान्य, तिल, तिल तेल, लोहा काले वस्त्र दक्षिणा के साथ सूप में रखकर डोम या किसी शूद्र को दें छाया दान करें। भगवान की मूर्तियों को स्नान कराएं और पूजा करें।सूतक काल समाप्त होने के बाद ताज़ा भोजन करें।सूतक काल के पहले तैयार भोजन को बर्बाद न करें, बल्कि उसमें तुलसी के पत्ते डालकर भोजन को शुद्ध करें।
ग्रहण में गर्भवती महिलाएं रखें इन बातों का ध्यान!
ग्रहण काल में ग्रहण को न देखें।घर से बाहर न निकलें।सिलाई, कढ़ाई एवं काटने-छीलने जैसे कार्यों को न करें।सुई व चाकू का प्रयोग न करें। ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के समय चाकू और सुई का उपयोग करने से गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों को क्षति पहुंचाती है। हमारी पृथ्वी पर सूर्यादि ग्रहों का सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव सदैव से ही रहा है। सूर्यादि ग्रह नक्षत्रों पर घटने वाली घटनाओं से हमारी पृथ्वी अछूती नहीं रह सकती है। पृथ्वी पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव से मानव जीवन सदैव ही प्रभावित होता रहता है। यह बात किसी से छुपी नही है।
ग्रहण क्या होता है?
पृथ्वी की छाया सूर्य से 6 राशि के अन्तर पर भ्रमण करती है तथा पूर्णमासी को चन्द्रमा की छाया सूर्य से 6 राशि के अन्तर होते हुए जिस पूर्णमासी को सूर्य एवं चन्द्रमा दोनों के अंश, कला एवं विकला पृथ्वी के समान होते हैं अर्थात एक सीध में होते हैं, उसी पूर्णमासी को चन्द्र ग्रहण लगता है। विश्व में किसी सूर्य ग्रहण के विपरीत, जो कि पृथ्वी के एक अपेक्षाकृत छोटे भाग से ही दिख पाता है, चन्द्र ग्रहण को पृथ्वी के रात्रि पक्ष के किसी भी भाग से देखा जा सकता है। जहाँ चन्द्रमा की छाया की लघुता के कारण सूर्य ग्रहण किसी भी स्थान से केवल कुछ मिनटों तक ही दिखता है, वहीं चन्द्र ग्रहण की अवधि कुछ घंटो की होती है। इसके अतिरिक्त चन्द्र ग्रहण को सूर्य ग्रहण के विपरीत किसी विशेष सुरक्षा उपकरण के बिना नंगी आँखों से भी देखा जा सकता है, क्योंकि चन्द्र ग्रहण की उज्ज्वलता पूर्ण चन्द्र से भी कम होती है।
ग्रहणों के प्रकार :-
सूर्य ग्रहण:-
भौतिक विज्ञान की दृष्टि से जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढ़क जाता है, उसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। पृथ्वी सूरज की परिक्रमा करती है और चंद्र पृथ्वी की। कभी-कभी चाँद, सूर्य और धरती के बीच आ जाता है। फिर वह सूर्य की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है। इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
चंद्र ग्रहण:-
चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते है जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्र आसंधियों के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं।
ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं:-
पूर्ण सूर्य ग्रहण:-
पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में ले लेता है। इसके फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुँच नहीं पाता है और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
आंशिक सूर्य ग्रहण:-
आंशिक सूर्यग्रहण में जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चन्दमा, सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण:-
वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफ़ी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढकता है, कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। कंगन आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
ग्रहण का पौराणिक महत्व:-
मत्स्यपुराण के अनुसार राहु (स्वरभानु) नामक दैत्य द्वारा देवताओं की पंक्ति मे छुपकर अमृत पीने की घटना को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया और देवताओं व जगत के कल्याण हेतु भगवान सूर्य ने इस बात को श्री हरि विण्णु जी को बता दिया। जिससे भगवान उसके इस अन्याय पूर्ण कृत से उसे मृत्यु दण्ड देने हेतु सुदर्शन चक्र से वार कर दिया। परिणामतः उसका सिर और धड़ अलग हो गए। जिसमें सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया। क्योंकि छल द्वारा उसके अमृत पीने से वह मरा नहीं और अपने प्रतिशोध का बदला लेने हेतु सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता हैं, जिसे हम सूर्य या चंद्र ग्रहण कहते हैं।
ग्रहण और आपदाएं:-
भारतीय ज्यातिष की मेदिनी सिद्धांत अनुसार जब कभी एक पक्ष अर्थात १५ दिन में दो ग्रहण पड़ते हैं तो उसके ६ मास के भीतर भूकम्प आते हैं।सिद्धांत अनुसार जब कभी शनि का संबंध बुध या मंगल से अथवा पृथ्वी तत्व राशियों (वृष, कन्या व मकर) के स्वामियों से हो तो भूकंप की संभावना बढ़ जाती है।सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण व चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा की कुंडली में सूर्यदेव अष्टमेश से पीड़ित हों। मंगल या बुध व शनि का आपस में संबंध हो या बुध व शनि या मंगल व शनि का संबंध लग्न, लग्नेश, अष्टम भाव या अष्टमेश से होता है।बुध वक्री या सूर्य से कम अंश का होता है या अस्त होता हो तो भूकंप की संभवना बढ़ जाती है।राहु व केतु के मध्य चार या अधिक ग्रह अशुभ स्वामियों के नक्षत्र पर होते हों गुरु-मंगल या गुरु-बुध का युति या दृष्टि संबंध होता हो तो भूकंप की संभवना बढ़ जाती है।
ग्रहण के समय ध्यान रखने योग्य बातें:-
ग्रहण के बाद नहाना चाहिए
यह भारतीय मान्यता है कि ग्रहण के पहले या बाद में राहु वा केतु का दुष्प्रभाव रहता है जो नहाने के बाद ही जाता है। इस मान्यता के पीछे भी एक विज्ञान है। सूर्य के अपर्याप्त रोशनी के कारण जीवाणु या कीटाणु ज्यादा पनपने लगते हैं जिसके कारण इंफेक्शन होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। इसलिए ग्रहण के बाद नहाने से शरीर से अवांछित टॉक्सिन्स निकल जाते हैं और बीमार पड़ने के संभावना को कुछ हद तक दूर किया जा सकता है।
ग्रहण के दौरान उपवास:-
ग्रहण प्रेरित गुरुत्वाकर्षण के लहरों के कारण ओजोन के परत पर प्रभाव पड़ने और ब्रह्मांडीय विकिरण दोनों के कारण पृथ्वीवासी पर कुप्रभाव पड़ता है। इसके कारण ग्रहण के समय जैव चुंबकीय प्रभाव बहुत सुदृढ़ होता है जिसके प्रभाव स्वरूप पेट संबंधी गड़बड़ होने की ज्यादा आशंका रहती है। इसलिए शरीर में किसी भी प्रकार के रासायनिक प्रभाव से बचने के लिए उपवास करने की सलाह दी जाती है।
अन्य
वैदिक व पौराणिक ग्रथों में ग्रहण के संदर्भ में कहा गया है कि ग्रहण काल मे सौभाग्यवती स्त्रियों को सिर के नीचे से ही स्नान करना चाहिए, अर्थात् उन्हें अपने बालों को नहीं खोलना चाहिए। उन्हे जल स्रोतों से बाहर स्नान करना चाहिए। सूतक व ग्रहण काल में देवमूर्ति को स्पर्श कतई नहीं करना चाहिए। ग्रहण काल में भोजन करना, अर्थात् अन्न, जल को ग्रहण नहीं करना चाहिए। सोना, सहवास करना, तेल लगाना तथा बेकार की बातें नहीं करना चाहिए। बच्चे, बूढे, रोगी एवं गर्भवती स्त्रियों को आवश्यकता के अनुसार खाने-पीने या दवाई लेने में दोष नहीं होता है।
सावधानी-गर्भवती महिलाओं को होने वाली संतान व स्व के हित को देखते हुए यह संयम व सावधानी रखना जरूरी होता है कि, वह ग्रहण के समय में नोकदार जैसे सुई व धारदार जैसे चाकू आदि वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस समय उन्हें प्रसन्नता से रहते हुए भगवान के चरित्र को स्मरण करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार ग्रहण के एक दिन पहले और ग्रहण के दिन तथा इसके पश्चात् तीन से चार दिनों तक किसी शादी व मंगल कार्य को व किसी व्रत की शुरूआत तथा उसका उद्यापन वर्जित रहता है। अर्थात् देव व संस्कृति में आस्था रखने वालों को यथा सम्भव नियमों का पालन करना चाहिए। जिन्हें लगता है, कि इससे कुछ नहीं होता उन्हें ग्रहण से संबंधित पुराणों व साहित्यों को पढ़ना चाहिए फिर उसके निष्कर्ष को लोगों के मध्य प्रस्तुत करना चाहिए।
सूतक क्या है?
सूतक समय को सामान्यता अशुभ मुहूर्त समय के रुप में प्रयोग किया जाता है। सामान्य शब्दों में इसे एक ऎसा समय कहा जा सकता है, जिसमें शुभ कार्य करने वर्जित होते है। धार्मिक नियमों के अनुसार ग्रहण सूर्यग्रहण में 12 घंटे और चंद्रग्रहण में 9 घंटे पूर्व ही सूतक शुरु हो जाता है और यह ग्रहण समाप्ति के मोक्ष काल के बाद स्नान धर्म स्थलों को फिर से पवित्र करने की क्रिया के बाद ही समाप्त होता है।
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कंकणाकृति के ग्रहण के समय सूर्य किसी कंगन की भांति नज़र आता है। इसलिए इसे कंकणाकृति ग्रहण कहा जाता है। पिछली बार वर्ष 1995 के पूर्ण ग्रहण के समय ऐसा ही हुआ था।
भूलकर भी नंगी आंखों से ना देखें
सूर्य ग्रहण को भूलकर भी खाली या नग्न आंखों से देखने की गलती नहीं करना चाहिये। यह आंखों के लिए बेहद नुकसानदायक है। इससे कुछ ही समय बाद आंखों की रोशनी जा सकती है। ग्रहण को देखने के लिए हमेशा सोलर चश्मा पहनें एवं जानकारों की सलाह के अनुसार ही सेफ डिवाइस का यूज करें।
एक साथ 6 ग्रह रहेंगे वक्री
एक साथ छ ग्रह वक्री रहेंगे बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु यह छह ग्रह 21 जून 2020 को वक्री रहेंगे। इन छह ग्रह का वक्री होने का अर्थ है कि यह ग्रहण बड़ी उथल-पुथल मचाने वाला है।
सूर्य ग्रहण 21 जून-
21 जून को सूर्य ग्रहण प्रातः 10:25 बजे प्रारम्भ होगा तथा मोक्ष अपराह्न 1:53(13:53) बजे होगा सम्पूर्ण उत्तराखंड में इसका समय 2 -3 मिनटों के अन्तराल से लगभग यही रहेगा।
ग्रहण का सूतक :-ग्रहण का सूतक ग्रहण प्रारम्भ होने से 12 घण्टे पूर्व से प्रारम्भ होकर ग्रहण समाप्ति तक रहेगा । उत्तराखंड में यह पूर्व दिन रात्रि 10:25(22:25) बजे से प्रारम्भ हो जायेगा।
कुछ विशेष योग:- रविवार के दिन पड़ने से चूड़ामणि ग्रहण कहा जाता है । कुछ समय के लिए यह कंकण आकृति में दिखाई देगा इसलिए इसे कंकणाकृति ग्रहण भी कहेंगे दूसरी ओर यह ग्रहण व्यतीपात महापात से व्याप्त होने के कारण जप-पाठ-स्नान-दान-मंत्र दीक्षा के लिए सिद्धि कारक अक्षय फलदायी एक दुर्लभ संयोग है आप इस महा योग में अधिकाधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करें।
निषेध:- सूतक काल एवं ग्रहण काल में बाल ,वृद्ध व रोगियों को छोड़कर भोजन का निषेध है । ग्रहण काल में शयन,भोजन शौच का पूर्ण निषेध है।
सावधानी:-जल,दूध , दही आदि में पवित्रता के दृष्टि कोण से कुशा या तुलसी दल डाल दें।
कैसे करें दिन का प्रारम्भ:-21 जून को आपका जागरण ग्रहण के सूतक काल में होगा प्रातःकाल दैनिक क्रिया ,स्नानानादि से निवृत होकर धूप -दीप प्रज्वलित कर योग,मंत्र जाप,पाठादि साधना प्रारम्भ कीजिए ,ध्यान रहे मूर्तियों का स्पर्श न करें । देवार्चन ,पूजनादि ग्रहण समाप्ति होने पर स्नान के बाद ही होगा ।
सूर्य देवता को प्रसन्न करें
धार्मिक दृष्टि से सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी चढ़ावे या बड़े अनुष्ठान की जरूरत नहीं पड़ती। इन्हें मात्र नमस्कार कर या जल का अर्घ्य देकर ही प्रसन्न किया जा सकता है। सूर्य को समस्त संसार को ऊर्जा प्रदान करने वाला देव भी माना जाता है। लौकिक कथाओं में मान्यता है कि धन, सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और संपन्नता को पाना है तो रविवार को अर्घ्य देते समय भगवान सूर्य के 12 नामों का जाप करें। इससे भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं। साथ ही कुंडली या आपकी राशि में सूर्य की स्थिति बलवान होती है।
12 राशियों पर ग्रहण का प्रभाव:-
यह ग्रहण मृगशिरा एवं आद्रा नक्षत्र अर्थात् मिथुन राशि में है ,मिथुन राशि के लिए यह विशेष प्रतिकूल है । वृष,मिथुन,कन्या,तुला,धनु व मीन राशि के लिए ग्रहण का फल प्रतिकूल है अन्य के लिए सामान्यतया ठीक है । जिनके लिए ग्रहण का फल प्रतिकूल है वे तथा गर्भवती देवियाँ ग्रहण न देखें । प्रतिकूल फल निवृत्ति के लिए जप ,पाठ,व लाल ,नीली,काली वस्तुओं का दान तथा ग्रहण काल में भगवान का स्मरण करें ।
भूमण्डल पर ग्रहण का यह होगा प्रभाव:-
किसानों को भारी संकट का सामना करना पड़ेगा,ग्रहण के समय मिथुन राशि में सूर्य-चन्द्र-बुध-राहु का चतुग्रही योग एवं मकर के नीचस्थ वक्री गुरु का वक्री शनि के साथ सम्बन्ध प्रतिष्ठित शासकों,सैन्य अधिकारियों तथा देश व विश्व के लिए बहुत भयावह है । अफगानिस्तान,चीन, जापान,पाकिस्तान व इण्डोनेशिया के कुछ भागों में जल प्रलय, तूफान ,भूकम्प रोगों आदि से जन -धन हानि की सम्भावनायें हैं । अनेक देशों में तनाव व युद्ध की स्थिति रह सकती है ।
अमावस्या श्राद्ध निर्णय:-यहाँ अमावस्या तिथि 21 जून की अपेक्षा 20 जून को मध्यान्ह काल को अधिक व्याप्त कर रही है इसलिए अमावस्या तिथि जन्य वार्षिक क्षयाह एकोदिष्ट श्राद्ध 20 जून को किया जाना शास्त्र सम्मत है।
सूर्य के इन 12 नामों का करें जाप
1- ॐ सूर्याय नम:।
2- ॐ मित्राय नम:।
3- ॐ रवये नम:।
4- ॐ भानवे नम:।
5- ॐ खगाय नम:।
6- ॐ पूष्णे नम:।
7- ॐ हिरण्यगर्भाय नम:।
8- ॐ मारीचाय नम:।
9- ॐ आदित्याय नम:।
10- ॐ सावित्रे नम:।
11- ॐ अर्काय नम:।
12- ॐ भास्कराय नम:।
14 दिसंबर को होगा दूसरा सूर्य ग्रहण
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नेपााल में सूर्य लाल दिखाई दिया, वहीं भारत के अधिकांश शहरों में आज सूर्य देवता चंद्रमा जैसे नजर आए। सभी सावधानियां बरतते हुए लोग इस खगोलीय घटना के साक्षी बने। वहीं देहरादून में रिंग ऑफ फायर का सबसे अच्छा दृश्य दिखाई दिया। यहां दोपहर 12:05 बजे सूर्य ग्रहण का नजारा ऐसा था।
(नेपाल में सूर्य ग्रहण का दृश्य)
पानीपत
दुबई
यहां देखें Live VIDEO
#WATCH Jammu and Kashmir: Jammu witnesses #SolarEclipse2020
It will start at 9:15 AM and will be visible until 3:04 PM. The maximum eclipse will take place at 12:10 IST. It will be visible from Asia, Africa, the Pacific, the Indian Ocean, parts of Europe and Australia. pic.twitter.com/hewOopYiCY
— ANI (@ANI) June 21, 2020
United Arab Emirates: #SolarEclipse2020 as seen in the skies of Dubai.
The solar eclipse will be visible until 11:12 AM. It will also be visible from Asia, Africa, the Pacific, the Indian Ocean, parts of Europe and Australia. pic.twitter.com/EAGWuVIdBO
— ANI (@ANI) June 21, 2020
ग्रहण की समाप्ति पर करें दान
ग्रहण काल के सूतक काल में मूर्ति स्पर्श, पूजा-पाठ, अनुष्ठान, ध्यान निषेध है। इस समय संकीर्तन पाठ, रामनाम जाप व सूर्य मंत्र जाप करें। ग्रहण की समाप्ति के बाद स्नान, दान, पूजा-पाठ इत्यादि अवश्य करना चाहिए। रोगी, वृद्धजनों, बालकों को धार्मिक नियमों के भंग होने का दोष नहीं लगता है। ग्रहण के अनिष्ठ फल से बचने के लिए स्वर्ण निर्मित कांसे के बर्तन में तिल, वस्त्र व दक्षिणा के साथ श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करना चाहिए। सोने, चांदी का ग्रह बिंब बनाकर भी दान कर सकते हैं।
प्राकृतिक आपदा और रोग बढ़ाएगा
ज्योतिर्विद पं.आनंद शंकर व्यास ने बताया कि ग्रहण के आरंभ व मध्यकाल के चक्र में ग्रह स्थिति के अनुसार प्राकृतिक आपदा, रोग के भय के साथ सत्ता और विपक्ष में संघर्ष की आशंका बनती है। कोरोना संक्रमण से शुरुआत तीन माह में राहत के आसार नहीं हैं। कमजोर और मध्यमवर्गीय को आर्थिक संकट तकलीफ देगा।