नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। प्रदेश में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से जुड़ी सुविधाओं की कमी को लेकर दायर जनहित याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाया है। बुधवार को चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस अरविंद वर्मा की युगलपीठ में इस मामले की सुनवाई हुई।
हालांकि, राज्य सरकार की ओर से मुख्य सचिव का शपथपत्र पेश नहीं किया जा सका, जिसके चलते कोर्ट ने अगली सुनवाई मई माह के लिए निर्धारित कर दी है। इससे पूर्व हुई सुनवाई में याचिकाकर्ता शिरीन मल्लेवार की ओर से अधिवक्ता गौतम खेत्रपाल ने दलील दी थी कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 63(4) के तहत इलेक्ट्रानिक अभिलेखों की प्रमाणीकरण के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा और संसाधनों की स्थापना अत्यंत आवश्यक है।
इसके साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79-ए का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य में कोई अधिकृत इलेक्ट्रानिक साक्ष्य परीक्षक (एग्जामिनर) नियुक्त नहीं है। हाई कोर्ट ने पिछली सुनवाई में राज्य सरकार के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए थे।
मगर, बुधवार को सरकार की ओर से बताया गया कि शपथपत्र तैयार नहीं हो सका है। इसे देखते हुए कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई मई माह के लिए टाल दी है।
केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता रमाकांत मिश्रा ने जानकारी दी कि देशभर में केंद्रीय और राज्य स्तरीय डिजिटल फोरेंसिक लैब की अधिसूचना के लिए एक योजना तैयार की गई है। उन्होंने बताया कि ऐसी लैब की स्थापना के लिए आईटी अवसंरचना, विशेष उपकरणों की उपलब्धता और प्रशिक्षित स्टाफ की जरूरत होती है।
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उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को आवश्यक दस्तावेज और प्रारूप भेजे जा चुके हैं, ताकि यदि किसी प्रयोगशाला में आधारभूत ढांचा उपलब्ध है, तो उसे मान्यता के लिए सिफारिश की जा सके। इसके अलावा यह भी बताया गया कि छत्तीसगढ़ पुलिस की साइबर लैब का निरीक्षण करने एक समिति राज्य में आई थी, जिसने कुछ खामियों की जानकारी दी थी।
इस पर केंद्र द्वारा राज्य सरकार को 19 मार्च 2021 और 10 मार्च 2025 को मेल एवं पत्र के माध्यम से सूचित किया गया था। बावजूद इसके अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई।
डिजिटल युग में अपराधों के स्वरूप में भारी बदलाव आया है। साइबर अपराध, डेटा चोरी, फर्जी दस्तावेज, ऑनलाइन ठगी जैसे मामलों में इलेक्ट्रानिक साक्ष्य की भूमिका बेहद अहम हो गई है।
मगर, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में यदि डिजिटल फोरेंसिक लैब या प्रमाणित विशेषज्ञ की व्यवस्था नहीं होती, तो न्याय प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है।