राज्य ब्यूरो, नईदुनिया, रायपुर: पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान हुए 32,00 करोड़ रुपये के शराब घोटाले में जांच एजेंसी ने बड़ा राजफाश किया है। आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) के आरोप पत्र के अनुसार ओम साईं बेवरेजेस प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर अतुल सिंह और मुकेश मनचंदा को शराब सिंडिकेट के प्रमुख अनवर ढेबर और विकास अग्रवाल(सुब्बू) के सहयोग से एफएल 10 ए लाइसेंस दिया गया था।
इससे उन्हें 2020-23 के बीच करीब 68 करोड़ रुपये का फायदा हुआ। इस रकम का 41 करोड़ रुपये सिंडिकेट को पहुंचाया गया, जबकि 27 करोड़ रुपये ओम साईं को मिले। ईओडब्ल्यू ने दावा किया कि इस धनराशि का एक बड़ा हिस्सा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी और जेल में बंद विजय भाटिया को दिया गया। जांच एजेंसी अब ओम साईं बेवरेजेस समेत अन्य कंपनियों के वित्तीय लेन-देन और शराब की आपूर्ति से जुड़े अन्य मामलों की जांच कर रही है। उम्मीद की जा रही है कि अतुल-मुकेश से पूछताछ में सिंडिकेट से जुड़े कई राज खुलकर सामने आएगे।
ईओडब्ल्यू की ओर से विशेष कोर्ट में अतुल सिंह और मुकेश मनचंदा के खिलाफ पेश किए गए आरोप पत्र में बताया गया कि ओम सांई ब्रेवरेज, दिशिता वेंचर्स और नेक्सजेन पावर इंजीटेक कंपनी शराब घोटाले को अंजाम देने में अहम कड़ी बनी। शराब विनिर्माता कंपनियां पहले इन तीनों लायसेंसधारियों को शराब बेचती थी फिर 10 प्रतिशत का मार्जिन मनी लेकर यह कंपनियां शराब विक्रेताओं से शराब खरीदी, और फिर इसे राज्य सरकार की ओर से संचालित शराब दुकानों को बेचा। इस अतिरिक्त लाभ का बंटवारा 60-40 प्रतिशत के अनुपात में सिंडिकेट और लाइसेंसी कंपनियों के बीच होता था।
देशी शराब की आपूर्ति करने के लिए राज्य में बनायी गयी शासकीय शराब दुकानों की व्यवस्था के समानांतर नई व्यवस्था बनाकर डिस्टलरी संचालकों से बिना रिकॉर्ड के देशी शराब बनाना शुरू किया। इसके साथ ही बोतलों में डुप्लीकेट होलोग्राम लगाकर सरकारी दुकानों के जरिए अलग से बिक्री कराते थे। इससे करोड़ों रूपयों की अवैध कमाई की गई।
इस पूरे खेल में डिस्टलरी संचालकों, बोतल आपूर्तिकर्ता एजेंसी, डुप्लीकेट होलोग्राम देने वाली एजेंसी, बी पार्ट की शराब बिक्री के पैसे एकत्र करने वाली एजेंसी, आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ सीएसएमसीएल के तत्कालीन एमडी अरूणपति त्रिपाठी आदि की संलिप्तता पाई गई। इसे बी-पार्ट के कमीशन के रूप में आरोपित किया गया। वर्ष 2019 से 2023 तक अवैध शराब की बिक्री से प्राप्त राशि वसूलने का काम विकास अग्रवाल उर्फ सुब्बू के जरिए से किया जाता था। वह अनवर ढेबर व अरूणपति त्रिपाठी को इसकी जानकारी देता था।
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जांच एजेंसी ने आरोप पत्र में दावा किया है कि प्रत्येक महीने 200 ट्रक, जिसमें प्रति ट्रक लगभग 800 शराब के पेटी भरे होते थे, उसे शराब निर्माताओं द्वारा सिंडिकेट को दिया जाता था। वर्ष 2019-2020 के बीच प्रति पेटी 560 रुपये के हिसाब से शराब निर्माताओं से सिंडिकेट को प्राप्त हुई जिसे 2,880 रूपए एमआरपी पर बेचा जाता था। बाद में 3840 रूपये प्रति पेटी तक बेचा गया। शराब निर्माताओं को 560 से 600 रूपये प्रति पेटी, आबकारी अधिकारियों को 150 रुपये प्रति पेटी कमीशन के तौर पर दिया जाता था। शेष राशि अनवर ढेबर द्वारा विकास अग्रवाल उर्फ सूब्बू के माध्यम से ली जाती थी।