हिड़मा का हमला और अमित शाह का संकल्प, बस्तर में 150 हथियारबंद माओवादी शेष
CG News: माओवादी गढ़ के रूप में पहचाना जाने वाला बस्तर अब इतिहास के सबसे बड़े मोड़ से गुजर रहा है। बस्तर आइजीपी सुंदरराज पी. के अनुसार पूरे संभाग में अब माओवादी संगठन का मुख्य नेतृत्व केवल दो नामों तक सिमट गया है। इनके साथ अधिकतम 130-150 हथियारबंद सदस्य ही सक्रिय माने जा रहे हैं।
Publish Date: Tue, 02 Dec 2025 02:37:00 PM (IST)
Updated Date: Tue, 02 Dec 2025 02:37:48 PM (IST)
थाना उसूर क्षेत्र के कर्रेगुट्टा पहाड़ी स्थित ताड़पाला में कैंप में तैनात जवान। नईदुनिया आर्काइवHighLights
- बस्तर अब इतिहास के सबसे बड़े मोड़ से गुजर रहा है
- ‘माओवादी हिंसकों के समूल समाप्ति’ रणनीति का दिखा परिणाम
- अधिकतम 130-150 हथियारबंद सदस्य ही सक्रिय माने जा रहे हैं
अनिमेष पाल, नईदुनिया जगदलपुर: देश के कभी सबसे भयावह और अभेद्य माओवादी गढ़ के रूप में पहचाना जाने वाला बस्तर अब इतिहास के सबसे बड़े मोड़ से गुजर रहा है। केंद्र सरकार की समग्र उन्मूलन नीति और गृह मंत्री अमित शाह की मार्च 2026 तक ‘माओवादी हिंसकों के समूल समाप्ति’ रणनीति ने वह परिणाम दिखा दिया है, जिसकी कल्पना भी पांच वर्ष पहले नहीं की जा सकती थी।
माओवादी संगठन केवल दो नाम तक सिमट गया
बस्तर आइजीपी सुंदरराज पी. के अनुसार पूरे संभाग में अब माओवादी संगठन का मुख्य नेतृत्व केवल दो नामों बारसे देवा और पश्चिम बस्तर डिविजन सचिव पापाराव तक सिमट गया है। इनके साथ अधिकतम 130-150 हथियारबंद सदस्य ही सक्रिय माने जा रहे हैं।
हिड़मा का हमला और शाह का संकल्प
अब इन सभी के सामने सिर्फ दो रास्ते बचे हैं, बाकियों की तरह आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटना या फिर बसवराजू और हिड़मा जैसे अंत की प्रतीक्षा करना। टेकुलगुड़ेम में 3 अप्रैल 2021 को हिड़मा के हिंसक दल द्वारा किए गए भीषण हमले में 21 जवान बलिदान हो गए थे और यह वही घटना बनी, जिसने बस्तर में माओवादी ढांचे के पतन की शुरुआत तय कर दी।
इसी के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बस्तर पहुंचे और माओवादी हिंसा के पूर्ण उन्मूलन का दृढ़ संकल्प लिया। पहले लक्ष्य तिथि 30 मार्च 2023 तय हुई, जिसे बाद में 30 मार्च 2026 तक बढ़ाया गया। तब माना जा रहा था कि बस्तर से माओवाद का सफाया लगभग असंभव है, लेकिन शाह की रणनीति और सुरक्षा बलों की निरंतर कार्रवाई ने इसे संभव कर दिया।
निर्णायक प्रहारों का वर्ष
माओवादियों के लिए वर्ष 2025 सबसे भारी साबित हुआ। यह वर्ष अभी खत्म भी नहीं हुआ है, परंतु 11 महीनों में सुरक्षा बलों ने माओवादी नेटवर्क की रीढ़ पूरी तरह तोड़ दी। वर्ष की शुरुआत गरियाबंद जिले में शीर्ष हिंसक चलपति के मुठभेड़ में मारे जाने से हुई।
इसके बाद माओवादी हिंसकों का प्रमुख बसवराजू के ढेर होने से पूरा संगठन भीतर तक हिल गया। इसके बाद पोलित ब्यूरो सदस्य और सीआरबी प्रमुख भूपति तथा केंद्रीय समिति सदस्य रूपेश का 261 माओवादियों के साथ आत्मसमर्पण से माओवादियों को सबसे बड़ा झटका लगा।
हिड़मा की मौत ने बदल दी तस्वीर
दक्षिण बस्तर का कुख्यात माओवादी माड़वी हिड़मा न केवल संगठन का ‘पोस्टर बॉय’ बल्कि जंगल युद्ध का सबसे खतरनाक रणनीतिकार माना जाता था। आंध्रप्रदेश में हुए मुठभेड़ में उसकी मौत ने पूरे माओवादी तंत्र का मनोबल चकनाचूर कर दिया।
हिड़मा के मारे जाने के सिर्फ दस दिनों में ही चार करोड़ रुपये से अधिक इनाम वाले 209 माओवादियों ने हथियार डाल दिए। इनमें दक्षिण-पश्चिम बस्तर डिवीजन सचिव व हिंसक दल प्रमुख मुचाकी एर्रा, दरभा डिविजन प्रभारी व चर्चित रणनीतिकार जी. पवनदम रेड्डी उर्फ श्याम दादा और एमएमसी विशेष जोनल समिति का सक्रिय सदस्य अनंत नागपुरे जैसे बड़े नाम शामिल हैं।