डिजिटल डेस्क,इंदौर। सितंबर 2025 इंदौर के लिए त्रासदियों से भरा महीना रहा। शहर में लगातार हुए हादसों ने न केवल कई जिंदगियां छीनीं बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और जवाबदेही की कमी को भी उजागर कर दिया। महीने भर में हुए चार बड़े हादसों ने शहरवासियों का भरोसा हिला दिया कभी अस्पताल की दीवारों के भीतर मासूमों की जान गई, कभी सड़क पर बेगुनाह कुचले गए और कभी घर ही मौत का मलबा बन गया। एक महीने में 12 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
अस्पताल से सड़कों तक हादसों की श्रृंखला
चूहा कांड
महीने की शुरुआत में एमवाय अस्पताल का “चूहा कांड” सामने आया। आरोप लगे कि नवजात शिशुओं की मौत चूहों द्वारा कुतरने से हुई। भले ही बाद में अस्पताल प्रबंधन ने मेडिकल कारण गिनाए, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया कि प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल की व्यवस्था और स्वच्छता किस स्तर पर है। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य ढांचे पर प्रश्नचिह्न था।
ट्रक हादसा
इसके कुछ ही दिन बाद एयरपोर्ट रोड पर एक बेकाबू ट्रक ने कई लोगों को कुचल दिया। इस हादसे में चार लोगों की मौत हो गई। साफ-सुथरे शहर की छवि रखने वाले इंदौर में यह घटना बताती है कि यातायात प्रबंधन और भारी वाहनों पर निगरानी कितनी कमजोर है। हादसे की रिपोर्ट बताती है कि ड्राइवर नशे में था और वह एयरपोर्ट एरिया होने के बावजूद नो एंट्री में चला गया।
इंदौर–उज्जैन रोड हादसा
17 सितंबर को इसी दौरान इंदौर–उज्जैन रोड पर हुए भीषण बस हादसे में पूरे परिवार की मौत हो गई। यह केवल एक सड़क दुर्घटना नहीं थी, बल्कि सड़क सुरक्षा और नियमों की अनदेखी का परिणाम था। इसमें भी ड्राइवर और क्लीनर के खिलाफ सिर्फ मामूली धाराओं में केस दर्ज किया गया।
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इमारत ढह गई
महीने के अंत में रानीपुरा की तीन मंजिला इमारत ढह गई। मलबे में कई लोग दब गए और दो की मौत हो गई। नगर निगम और बिल्डिंग परमिट देने वाली एजेंसियों की जिम्मेदारी यहां सवालों के घेरे में आ गई। जर्जर मकानों का सर्वे और समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं की गई, यह सबसे बड़ा सवाल है।
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हादसों के छिपे संकेत
अगर इन घटनाओं को अलग-अलग देखने की बजाय श्रृंखला में देखा जाए, तो साफ होता है कि शहर में प्रणालीगत लापरवाही और जवाबदेही की कमी सबसे बड़ी वजह है।
विशेषज्ञों की राय
शहर के शहरी विकास विशेषज्ञों का कहना है कि इंदौर स्मार्ट सिटी और स्वच्छता की छवि पर करोड़ों रुपये खर्च करता है, लेकिन स्वास्थ्य और सुरक्षा ढांचे पर उतनी गंभीरता नहीं दिखती। हादसे यह चेतावनी हैं कि अब केवल इवेंट्स और अवॉर्ड्स से नहीं, बल्कि सिस्टम की जमीनी मजबूती से शहर को सुरक्षित बनाया जा सकता है।
आगे क्या होना चाहिए?
अस्पतालों में स्वतंत्र ऑडिट और साफ-सफाई की सख्त निगरानी।
एयरपोर्ट रोड और अन्य व्यस्त मार्गों पर स्पीड कैमरे और GPS आधारित निगरानी।
नगर निगम द्वारा पुराने मकानों का व्यापक सर्वे और तुरंत खाली कराने की कार्रवाई।
हादसों के बाद केवल बयानबाजी नहीं, बल्कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई।
सितंबर के हादसों ने यह साफ कर दिया है कि शहर में विकास और चमक के साथ-साथ सुरक्षा और भरोसा भी उतना ही जरूरी है। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी और ठोस सुधार लागू नहीं होंगे, इंदौर जैसे आधुनिक शहर भी हादसों की जकड़ से बाहर नहीं निकल पाएंगे।