
नईदुनिया प्रतिनिधि, जबलपुर: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि महाधिवक्ता कार्यालय में आरक्षित वर्ग (ओबीसी, एससी व एसटी) के कितने शासकीय अधिवक्ता पदस्थ हैं। शीर्ष अदालत ने एडवोकेट जनरल आफिस में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की जानकारी भी पेश करने कहा है।
मंगलवार को सुनवाई के बाद जस्टिस एम सुंद्रेश तथा जस्टिस सतीश शर्मा की खंडपीठ ने सरकार से पूछा कि महाधिवक्ता कार्यालय में आरक्षण अधिनियम 1994 क्यों लागू नहीं होता। मामले पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद नियत की गई है।
दरअसल, ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की है। पूर्व में मप्र हाई कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद शीर्ष अदालत की शरण ली गई। एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर एवं विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा।
उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश में ओबीसी, एससी, एसटी की लगभग 88 प्रतिशत आबादी है। प्रदेश में 49.8 प्रतिशत महिलाओं की आबादी है। इसके बावजूद महाधिवक्ता कार्यालय में इस वर्ग के अधिवक्ताओं को समुचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा रहा है।
इस कारण आरक्षित वर्ग के जज हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में नाम मात्र के हैं। वहीं सरकार की ओर से दलील दी गई कि शासकीय अधिवक्ता के पद पर कांट्रेक्ट नियुक्ति दी जाती है, इसलिए उसमें आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता।
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दलील दी गई कि मध्य प्रदेश आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 2(बी) एवं 2(एफ) तथा धारा 3 एवं 4(2) में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि महाधिवक्ता कार्यालय, जिला न्यायालयों, निगम मंडल में नियुक्त विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में आरक्षण लागू होगा। शासकीय अधिवक्ताओं को सरकार द्वारा राज्य की निधि (पब्लिक फंड) से निर्धारित सैलरी दी जाती है।
महाधिवक्ता कार्यालय जबलपुर, इंदौर एवं ग्वालियर तथा सर्वोच्च न्यायालय में एडीशनल एडवोकेट जनरल, डिप्टी एडवोकेट जनरल, शासकीय अधिवक्ता, उप शासकीय अधिवक्ता के लगभग 150 पद स्वीकृत हैं। इसके अलावा 500 से अधिक पैनल लायर्स के पद भी हैं।