अंबुज माहेश्वरी, नईदुनिया, रायसेन। मंगोलिया के राष्ट्रपति खुरेलसुख उखना इस समय भारत दौरे पर हैं। मंगलवार को नई दिल्ली में उनका स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों देशों के बीच गहरे धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंधों पर जोर दिया। इस दौरान प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि अगले वर्ष भगवान बुद्ध के दो महान शिष्यों सारिपुत्र और मौदग्लायन के पवित्र अवशेष मंगोलिया भेजे जाएंगे।
प्रधानमंत्री द्वारा जिन पवित्र अवशेषों का उल्लेख किया गया है, वे सांची के चेतियागिरि विहार में रखे हुए हैं। इन अवशेषों को मंगोलिया भेजने की तैयारी जून से ही जारी है। संस्कृति मंत्रालय और जिला प्रशासन के बीच पत्राचार के बाद महाबोधि सोसाइटी ऑफ सांची से इसकी औपचारिक सहमति भी ली जा चुकी है।
दूसरी बार सांची से बाहर पवित्र अवशेष
74 वर्षों में यह दूसरी बार होगा जब सांची से बाहर पवित्र अवशेष भेजे जाएंगे। पिछले वर्ष थाइलैंड सरकार के आग्रह पर इन्हें 28 दिन के लिए वहां भेजा गया था। महाबोधि सोसायटी के प्रमुख और जापान के लंकाजी टेंपल के मुख्य संघ नायक वानगल उपतिस्स नायक थेरो ने इस फैसले को ऐतिहासिक बताया और कहा कि इससे मंगोलिया के लोगों को इन पवित्र अवशेषों के दर्शन और पूजन का अवसर मिलेगा।
नेहरू की मौजूदगी में सांची पहुंचे थे अवशेष
विश्व धरोहर स्थल सांची स्थित चेतियागिरि विहार में भगवान बुद्ध के परम शिष्य सारिपुत्र और महामोग्गलायन (मौदग्लायन) की पवित्र अस्थियां (धातु कलश) रखी हुई हैं। इन अवशेषों की खोज 1851 में जनरल कनिंघम ने सांची स्तूप नंबर 3 की खुदाई के दौरान की थी। वे इन्हें ब्रिटेन ले गए थे। आजादी के बाद 30 नवंबर 1952 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में इन पवित्र अवशेषों को चेतियागिरि विहार में स्थापित किया गया था।
क्यों हैं ये अवशेष महत्वपूर्ण
बौद्ध परंपरा में सारिपुत्र और महामोग्गलायन को भगवान बुद्ध के दाएं और बाएं बैठने का गौरव प्राप्त था। इन्हें धम्म और अभिधम्म का सर्वोच्च ज्ञाता माना जाता है। बुद्ध के जीवनकाल में ही उनका परिनिर्वाण हो गया था। इसी कारण उनके अवशेष धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते हैं।