
डायबिटीज आजकल एक आम बीमारी हो गई है, जो बुजुर्गों, युवाओं और बच्चों हर वर्ग को हो रही है। डायबिटीज को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है क्योंकि यह शरीर के हर ऑर्गन को प्रभावित कर सकती है। डायबिटीज की बीमारी की गंभीरता को लेकर विशेष जानकारी दे रहे हैं इंदौर के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के डॉ. प्रशांत कडूस्कर, कन्सल्टेन्ट, एंडोक्राइनोलॉजी एवं डायबिटीज-
इन्सुलिन हार्मोन के उत्पादन या काम करने की क्षमता की कमी के कारण ग्लुकोज (शुगर) की मात्रा बढ़ने को मधुमेह कहा जाता है। इस लंबी चलने वाली बीमारी में तंत्रिकाओ एवं नसों के नुकसान के कारण हृदयरोग, रक्तचाप बढ़ना, किडनी का फेल होना, लकवा लग जाना के अलावा कई समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक आज दुनिया लगभग 53.7 करोड़ तथा भारत मे 8.2 करोड़ जनसंख्या मधुमेह से ग्रसित है। अनुमान है कि 2045 तक हर आठ मे से एक व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित होगा, जो कि एक गंभीरता पूर्ण विषय है।
गतिहीन जीवन शैली, व्यायाम का अभाव, दिनचर्या मे अनुशासन ना होना, मानसिक एवं शारीरिक तनाव, खाने पीने की गलत आदतें, तुरंत बनने वाला या तैयार खाना आदि सभी के कारण शरीर की ऊर्जा का संतुलन बिगड़ता है जिससे मधुमेह का खतरा बढ़ जाता है।
निम्नलिखित श्रेणियों के लोगों में मधुमेह का खतरा अधिक होता है। ऐसे सभी व्यक्तियों को मधुमेह की जांच करानी चाहिये-
उपरोक्त समस्याएं होने पर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट से संपर्क करें जिसके लिए किसी ऐसे अस्पताल का चुनाव करें, जहां चौबीस घंटे डॉक्टरों की सुविधा उपलब्ध हो, जिससे कि समय पर जांच के साथ ही सही इलाज किया जा सके।
बच्चों में सामान्य रूप से दो तरह के मधुमेह पाए जाते हैं-
1 टाईप वन डायबिटीज - इसमें बच्चे के शरीर मे इन्सुलिन की मात्रा अत्यधिक कम होती है।
२. टाईप टू डायबिटीज - इसमें इंसुलिन की मात्रा अधिक होती है, परंतु उसकी काम करने की क्षमता कम होती है।
बच्चों में दस साल की आयु पूर्ण होने के पर यदि उनमें मोटापा बढ़ रहा है इसके रक्तचाप बढ़ना, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, बच्चे का कम गतिशील होना और लड़कियों में पॉलिसिस्टिक ओवरी (PCOD) की समस्या होने पर या शिशु के जन्म के वक्त वजन का अत्यधिक कम होना आदि स्थितियों में डायबिटीज का टेस्ट जरूर करवा लेना चाहिए।