धर्म डेस्क। हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष की शुरुआत मानी जाती है। जिसका समापन आश्विन माह की अमावस्या पर होता है। ऐसे में 8 सितंबर से पितृपक्ष की शुरुआत होने जा रही है, जिसका समापन 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या पर होगा। यह वह अवधि मानी जाती है जब पितृ पृथ्वी लोक पर आते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि आप कि तरह पितरों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का तर्पण और पिंडदान करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। वहीं, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए पितृ पक्ष के दौरान रोजाना श्रद्धाभाव से पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। लेकिन क्या पितृ पक्ष में पूर्वजों को देख पाना मुमकिन है? इस सवाल को लेकर सभी संशय में रहते हैं। आइए, इसके बारे में गरुड़ पुराण से जानते हैं-
श्लेष्माश्रु बान्धवैर्मुक्तं प्रेतो भुङ्क्ते यतोऽवशः ।
अतो न रोदितव्यं हि तदा शोकान्निरर्थकात् ॥
यदि वर्षसहस्त्राणि शोचतेऽहर्निशं नरः ।
तथापि नैव निधनं गतो दृश्येत कर्हिचित् ॥
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्भुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न शोकं कारयेद् बुधः ॥
न हि कश्चिदुपायोऽस्ति दैवो वा मानुषोऽपि वा ।
यो हि मृत्युवशं प्राप्तो जन्तुः पुनरिहाव्रजेत् ॥
अवश्यं भाविभावानां प्रतीकारो भवेद्यदि ।
तदा दुःखैर्न युज्येरन् नलरामयुधिष्ठिराः ॥
नायमत्यन्तसंवासः कस्यचित् केनचित् सह ।
अपि स्वस्य शरीरेण किमुतान्यैः पृथग्जनैः ॥
गरुड़ पुराण (Garuda Purana) में पितृ के लिए रोने या आंसू बहाने की मनाही है। आसान शब्दों में कहें तो गरुड़ पुराण में स्पष्ट लिखा है कि पितरों के लिए रोना नहीं चाहिए। ऐसा करने से पितृ अश्रुपात (आंसू) का पान करते हैं। भगवान नारायण अपने वाहक गरुड़ जी से कहते हैं कि पितरों के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
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अगर कोई व्यक्ति पितृ के लिए रोता है या वर्षों तक शोक करता है, तो भी उस व्यक्ति को मृत प्राणी यानी पितृ (life after death beliefs) दिखाई नहीं देगा। जिस व्यक्ति ने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित होगी। इसके लिए बुद्धिमान व्यक्ति को रोना नहीं चाहिए।
इसके आगे भगवान विष्णु कहते हैं कि ऐसा कोई दैवीय या मानवीय उपाय नहीं है, जिसके द्वारा मृत व्यक्ति दोबारा से धरती पर आ सके। अगर ऐसा होता, तो भगवान राम, नल और युधिष्ठिर आदि दुख नहीं भोगते। इस जगत में सदा के लिए किसी का रहना संभव नहीं है और न ही कोई किसी के लिए अनंत काल तक रह सकता है।