अंजली तोमर, नवदुनिया इंदौर। इंदौर के कमला नेहरू संग्रहालय से गंभीर हालत में लाया गया तेंदुआ ‘इंदर’ आज वन विहार राष्ट्रीय उद्यान भोपाल में जीवटता का ऐसा उदाहरण बन चुका है, जो देखभाल, संवेदनशीलता और सतत प्रयासों की अनूठी मिसाल है।
जिस दिन उसे इंदौर से भोपाल लाया गया, वन्यजीव विशेषज्ञों को भी लगा था कि वह शायद अब जीवित नहीं बचेगा। लेकिन छह साल बाद आज स्थिति बिल्कुल अलग है। अंधा होने के बावजूद इंदर न सिर्फ सक्रिय है, बल्कि अपने पूरे आवास और बाहरी जगहों को सूंघकर पहचानने लगा है।
जंगल में अत्यंत गंभीर स्थिति में मिला था
वन परिक्षेत्र इंदौर के ग्राम नयापुरा (कक्ष क्रमांक 222) में जब यह तेंदुआ मिला, तब हालत अत्यंत गंभीर थी। सिर में 35-40 छर्रे धंसे हुए थे। उसके शरीर से खून बह रहा था और आंखों की रोशनी पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। 21 सितंबर 2020 को भोपाल स्थित पशु चिकित्सालय में इसे सीटी स्कैन के लिए लाया गया। वहीं, पता चला कि ऑपरेशन करना संभव नहीं है, क्योंकि छर्रे दिमाग के बेहद संवेदनशील हिस्सों के पास थे।
तेंदुआ ‘डिप्रेशन में था और मौत की कगार पर पहुंच चुका था
डॉक्टरों ने कहा कि यह तेंदुआ ‘डिप्रेशन में था और लगभग मौत की कगार पर पहुंच चुका था।’ तत्कालीन डॉयरेक्टर कमलिका महोलता और वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता ने इसे वन विहार में क्वारंटाइन में रखा। क्योंकि इसे डिप्रेशन और शारीरिक जटिलताओं से बाहर निकालना था।
यह भी पढ़ें- छत्तीसगढ़ में करीब 20 हजार 'मौत' के कुएं, वन्य प्राणियों पर मंडरा रहा खतरा
मन शांत करने के लिए मधुर संगीत सुनवाया
टीम ने कई अनोखे प्रयोग किए जैसे- मन शांत करने के लिए मधुर संगीत सुनवाया, बाड़े में अलग-अलग स्थानों पर खाना रखकर सूंघने की शक्ति को सक्रिय कराया, मानव उपस्थिति कम रखी, ताकि तनाव न बढ़े। धीरे-धीरे व्यावहारिक गतिविधियों से परिचय कराया, ये प्रयास शुरू में मुश्किल थे। इंदर डर जाता था, खाना नहीं खाता था। कोने में दुबककर बैठा रहता था। लेकिन टीम हारी नहीं। जब उसकी मानसिक स्थिति थोड़ी स्थिर हुई, तब उसे हाउसिंग एरिया में शिफ्ट किया गया। यहां शर्मानंद गेरे और दिलीप बाथम ने उसकी पूरी देखरेख की।
बड़ी चुनौती थी उसे अपने नए घर का नक्शा ‘महसूस’ कराना
अंधे होने के कारण सबसे बड़ी चुनौती थी उसे अपने नए घर का नक्शा ‘महसूस’ कराना। इसलिए बाड़े में जगह-जगह खाना रखा जाता। खाने की जगह रोज बदल दी जाती थी। ऊंचाई पर भी भोजन रखा जाता, क्योंकि तेंदुए प्राकृतिक रूप से ऊंचे स्थान पसंद करते हैं। उसके चलने के मार्ग खुले छोड़े गए, ताकि वह स्वतंत्र महसूस कर सके। दो महीने में वह अपने हाउसिंग का पूरा नक्शा सूंघकर समझ गया। छह महीने बाद इंदर पूरी तरह अपने वातावरण में सहज हो चुका था।
यह भी पढ़ें- रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में बनेगा प्रदेश में चीतों का तीसरा घर, अफ्रीका के चीतों को बसाने की तैयारी
वन विहार की विशेषज्ञ टीम ने बचाई जिंदगी
आज इंदर अन्य तेंदुओं की तरह सक्रिय है। बाड़े से बाहर की आवाजें पहचानता है। ऊंचाई पर बैठना पसंद करता है और हर गतिविधि कुशलता से करता है। सबको लगा था कि यह नहीं बचेगा। लेकिन देखभाल, अनुशासन, धैर्य और टीमवर्क ने इसे नई जिंदगी दी है।
इंदर आज इस बात का प्रमाण है कि अगर सही इलाज, संवेदना और निरंतर प्रयास मिले, तो वन्यजीव मृत्यु के मुंह से भी वापस लौट सकते हैं।
- विजय कुमार, आइएफएस, डॉयरेक्टर, नेशनल पार्क एंड जू