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चुनाव तारीख: 12 मई 2019
चंपारण नाम चंपा और अरण्य की संधि से बना है। महात्मा गांधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलाई थी। आजादी के बाद लगातार तीन टर्म कांग्रेस के टिकट पर कमलनाथ तिवारी यहां से जीतते रहे। 1974 में कांग्रेस विरोधी लहर में पार्टी हवा हो गई। 1977 में जनता पार्टी के फजीलुर रहमान विजयी हुए। 1980 में कांग्रेस फिर वापस आ गई। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में पूर्वी और पश्चिम चंपारण का निर्माण करनेवाले केदार पांडेय को लोगों ने सांसद के रूप में चुनकर दिल्ली भेजा। उनके बाद पुत्र मनोज पांडेय के सिर सांसद का सेहरा बंधा। वे कांग्रेस के आखिरी सांसद रहे। वर्ष 1989 में वीपी सिंह की लहर में समाजवादी नेता धर्मेश वर्मा जनता दल यूनाइटेड से विजयी रहे। 1991 में फैयाजुल आजम तथा इसके बाद 1996 से तीन टर्म भाजपा के डॉ. मदन प्रसाद जायसवाल यहां से सांसद रहे। 2004 में राजद के पं. रघुनाथ झा ने उनके विजय रथ को रोका। मगर, 2009 के बाद यहां से डॉ. मदन प्रसाद जायसवाल के पुत्र डॉ. संजय जासवाल जीतते आ रहे हैं। विधानसभा क्षेत्र और डेमोग्राफी पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की छह सीटें हैं। ये हैं-बेतिया, नौतन, चनपटिया, रक्सौल, नरकटिया और सुगौली। रक्सौल, नरकटिया और सुगौली पूर्वी चंपारण में है। बेतिया, नौतन और चनपटिया पश्चिमी चंपारण में। यहां पर कुल मतदाता 23 लाख 96 हजार 650 हैं। बड़ी घटनाएं और विकास वर्ष 2017 के मई में बिहार व नेपाल के आतंक रहे कुख्यात बबलू दुबे की बेतिया कोर्ट में पेशी के दौरान गोली मारकर कर दी गई थी। बबलू पर 50 से ज्यादा अपहरण, हत्या और लूट के मामले दर्ज थे। उसपर जेल में रहते हुए नेपाल के बड़े व्यवसायी सुरेश केडिया के अपहरण का आरोप लगा था। लोकसभा क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर विकास के कई कार्य हुए हैं। सड़क, पुल-पुलियों का निर्माण हुआ है। सुगौली में रेल अंडर ब्रिज का काम चल रहा। इसमें सांसद ने रेलवे को 1.97 करोड़ रुपये दिए हैं। अंतरप्रांतीय पहचान स्थापित करनेवाली मनुवापुल सड़कका भी निर्माण चल रहा है। कुमारबाग स्टील प्लांट की उत्पादन क्षमता को भी दोगुनी करने का प्रस्ताव है।चनपटिया में बंद चीनीमिल, गन्ना किसानों की समस्या, बेतिया और रक्सौल की बदहाल सड़कें स्थानीय स्तर पर चुनावी मुद्दे होंगे। खास बातें पश्चिम चंपारण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बिहार के 40 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। 2002 में परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद 2008 में यह निर्वाचन क्षेत्र अस्तित्व में आया। 2009 के लोकसभा चुनाव के लिए लोगों ने मतदान किया। हिमालय के तराई इलाके में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। बेतिया जिले का मुख्यालय इस शहर में हैं। यहां का वाल्मीकि नगर देवी सीता की शरणस्थली होने से अति पवित्र है। राजा जनक के समय यह तिरहुत प्रदेश का अंग था जो बाद में छठी सदी ईसा पूर्व में वैशाली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। अजातशत्रु के द्वारा वैशाली को जीते जाने के बाद यह मौर्य वंश, कण्व वंश, शुंग वंश, कुषाण वंश तथा गुप्त वंश के अधीन रहा। उत्तर प्रदेश और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र भारत के स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गांधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलाई थी। गांधीजी का प्रथम सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल्य पन्ना है।